दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को गिरफ्तार आम आदमी पार्टी (आप) सांसद संजय सिंह की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। संजय सिंह ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से संबंधित धन शोधन मामले में जमानत की मांग की गई है।न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने संजय सिंह और ईडी के वकीलों की दलीलें सुनीं। संजय सिंह ने इस आधार पर जमानत मांगी कि वह पिछले तीन महीने से हिरासत में हैं। इस अपराध में उनकी कोई भूमिका नहीं बताई गई है। जांच एजेंसी ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि संजय सिंह वर्ष 2021-22 की नीति अवधि से संबंधित दिल्ली शराब घोटाले से उत्पन्न अपराध की आय को प्राप्त करने, रखने, छुपाने, फैलाने और उपयोग करने में शामिल थे।ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी कि गवाहों को जांच एजेंसी को सच न बताने के लिए धमकाया जा रहा है। यह एक और कारण है कि सिंह को जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि संजय सिंह में फिर से इसी तरह का अपराध करने की प्रवृत्ति है। उनकी ईडी कार्यालय में भी पहुंच थी क्योंकि वह कुछ दस्तावेज हासिल करने में कामयाब रहे जो ईडी कार्यालय में थे और सार्वजनिक डोमेन में नहीं थे।संजय सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील मोहित माथुर ने कहा कि उन्हें ईडी के स्टार गवाह (दिनेश अरोड़ा) के बयान के बाद गिरफ्तार किया गया था। बचाव पक्ष ने कहा कि उन्हें धनशोधन मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि सीबीआई की मुख्य प्राथमिकी में उनका नाम नहीं था।
ईडी द्वारा 4 अक्टूबर, 2023 को गिरफ्तार किए गए राज्यसभा सदस्य ने विशेष अदालत के 22 दिसंबर 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसके द्वारा धनशोधन मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। याचिका के जवाब में ईडी ने कहा कि सिंह कथित तौर पर अपराध की आय को सफेद करने के लिए एक विशेष प्रयोजन के तहत कंपनी बनाने में शामिल थे।
जांच एजेंसी ने कहा कि जांच के दौरान यह पता चला कि सिंह कथित घोटाले में एक प्रमुख साजिशकर्ता है और वह इस मामले में कई आरोपियों या संदिग्धों, व्यवसायी दिनेश अरोड़ा और अमित अरोड़ा के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था। ईडी ने आरोप लगाया है कि सिंह ने अब समाप्त हो चुकी आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे कथित तौर पर कुछ शराब निर्माताओं, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को मौद्रिक लाभ हुआ।
यह मामला वर्ष 2021-22 के लिए राज्य सरकार की आबकारी नीति को तैयार करने और क्रियान्वित करने में कथित भ्रष्टाचार से संबंधित है, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था। उपराज्यपाल वीके सक्सेना की सिफारिश के बाद सीबीआई ने कथित भ्रष्टाचार पर एक प्राथमिकी दर्ज की थी।