नीतीश के मिशन का अधिग्रहण? कौन कराएगा अखिलेश, ममता, केजरीवाल से कांग्रेस की सीट पंचायत?

9 अगस्त 2022 को जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने बीजेपी को दोबारा छोड़कर जैसे ही आरजेडी महागठबंधन में वापसी की, एक चीज साफ हो गई थी कि वो सिर्फ बिहार सरकार चलाने बाहर नहीं आए हैं। नीतीश किसी मिशन पर निकले हैं जो बीजेपी के खिलाफ कुछ बड़ा खड़ा करने की कोशिश हो सकती है।दस महीने में नीतीश ने पटना में 15 दलों के नेताओं को कांग्रेस के साथ बिठा दिया। लेकिन नीतीश के मिशन का कांग्रेस ने बेंगलुरु में अधिग्रहण कर लिया। ड्राइविंग सीट पर नीतीश की जगह कांग्रेस बैठ गई। इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे का काम रुका है। अभी कांग्रेस के एजेंडे पर राज्यों के चुनाव हैं जहां जीत मिलने पर वो क्षेत्रीय दलों से कुछ ज्यादा सीट लेने की नैतिक ताकत हासिल कर सकती है।

नीतीश ने गुरुवार को कहा कि वो तो कांग्रेस को ही आगे बढ़ाने में लगे थे लेकिन कांग्रेस को अभी लोकसभा चुनाव की चिंता नहीं है। इसलिए गठबंधन में कोई काम नहीं हो रहा है। नीतीश ने इंडिया गठबंधन में अपनी बदली भूमिका को यह कहकर जताया कि जब राज्यों के चुनाव हो जाएंगे तब कांग्रेस खुद सबको बुलाएगी। नीतीश ही थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी मोर्चे की बात करने वाले नेताओं को भी विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस को स्वीकार करने के लिए मनाया। नवीन पटनायक और के चंद्रशेखर राव उर्फ केसीआर की तरह जो नेता नहीं माने, उन्हें छोड़ दिया। लेकिन अब नीतीश की ताजा नाराजगी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल गठबंधन में तीन ऐसे नेता हैं जिनसे कांग्रेस की बात कब टूट जाए, कोई नहीं जानता।

ऐसे में कांग्रेस को एक तीसरी पार्टी का स्वीकार्य नेता चाहिए जो सेतु बनकर सुलह करा दे। संयोग कहिए या कौशल- सपा, टीएमसी और आप के नेताओं को गठबंधन में लाने का काम नीतीश ने ही किया। ममता और अखिलेश को नीतीश ने एक दिन में कोलकाता से लखनऊ तक का रास्ता नापकर बुलाया था। लेकिन कांग्रेस ने कंट्रोल हासिल करने के बाद गठबंधन के सूत्रधार को संयोजक तक नहीं बनने दिया है। नीतीश का मिजाज समझने वाले दावा करते हैं कि एक बार उनका मन उखड़ जाए तो फिर वो कुछ कर गुजरते हैं। ऐसे ही रह-रहकर उनके एनडीए में लौटने की चर्चा होती रहती है। पिछले बिहार दौरे पर गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी के बंद दरवाजा की बात भी नहीं की।

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन खड़ा करने के लिए नीतीश को सब्र करना पड़ा। कांग्रेस ने इस काम को छह-सात महीने लटकाकर रखा। सोनिया गांधी से पिछले साल सितंबर में मिलने के बाद नीतीश की मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात अप्रैल 2023 में हुई तब कांग्रेस के रुख में तेजी दिखी। नीतीश ने फिर दो महीने के अंदर पटना में पहली बैठक करा दी। 24 दिन बाद बेंगलुरु में दूसरी और उसके 45 दिन बाद मुंबई में तीसरी मीटिंग हो गई। नीतीश चाहते थे कि अक्टूबर तक सीट बंट जाए और साल के अंत तक कैंडिडेट को मैदान में उतार दिया जाए। गठबंधन और कैंडिडेट को जमीन पर वोटर के बीच पहचान और स्वीकृति के लिए छह महीने का समय दिया जाए। लेकिन वो हुआ नहीं। अब तो आधा दिसंबर बीतने के बाद ही कुछ होने की उम्मीद है जब पांच राज्यों के नतीजे आ जाएं और उसके हिसाब से सरकार बन जाए।

बीजेपी स्वाभाविक रूप से नीतीश की नाराजगी से उत्साहित हैं। बिहार भाजपा अध्यक्ष रह चुके मंगल पांडेय ने कह दिया है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडिया गठबंधन बिखर गया है। पांडेय ने कहा- “कांग्रेस की राजनीति हमेशा स्वार्थपरक रही है। परिवारवाद से ग्रसित ये पार्टी अपने स्वार्थ को सर्वोपरि मानती है। स्वार्थ के आगे किसी को तवज्जो नहीं देती।” पांडेय ने कहा कि जेडीयू को भरोसा नहीं हो रहा है कि जिस मुहिम के लिए वह खुद आगे आया था, उस मुहिम की हवा कांग्रेस ने ही निकाल दी।

लंबे समय तक भाजपा के सहयोगी रह चुके नीतीश जानते हैं कि इंडिया गठबंधन का मुकाबला एनडीए से है जो शक्ति-साधन संपन्न है। लड़ाई की तैयारी में एक दिन की देरी भी बड़ा नुकसान कर रही है। 1 सितंबर को मुंबई की बैठक में सीट शेयरिंग पर तेजी से बातचीत पूरी करने का प्रस्ताव पास करने के बाद से सीट बंटवारे पर कोई मीटिंग नहीं हुई है। इससे गठबंधन के सारे बड़े दल परेशान हैं। नीतीश ने सहयोगी दलों के नेताओं की बेचैनी को जाहिर भर किया है कि राज्यों के लोभ में कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी का नुकसान कर रही है। अखिलेश, ममता या केजरीवाल को मनाने की गारंटी तो नीतीश दे सकते हैं लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट से लैस नीतीश के मन में दिसंबर तक क्या-क्या चलेगा, इसकी गारंटी कौन लेगा?

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