जब एलके आडवाणी पर लगे थे गंभीर आरोप, तत्काल थमा दिया इस्तीफा; फिर हासिल की धुआंधार जीत

मोदी सरकार ने पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया है। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के बाद आडवाणी ऐसे भाजपा नेता हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा रहा है।राजनीतिक जीवन में अपने सिद्धातों की वजह से भी एलके आडवाणी की पहचान रही है। राम मंदिर आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका रही और फिर कई सालों तक उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ा। हालांकि कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया। आडवाणी ऐसे नेता हैं जो कि राजनीति में नैतिकता को सबसे ऊपर रखा। उनपर भ्रष्टाचार के आरोप ही लगे थे कि उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और जब बेदाग साबित हुए तभी सदन में कदम रखा। उनके इस फैसले को आज राजनीति का उदाहरण माना जाता है।

आडवाणी पर क्या आरोप लगे थे
आडवाणी पर आरोप लगने 1993 से ही शुरू हो गए थे। उस समय नरसिम्हा सरकार में रहे सुब्रमण्यन स्वामी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि लालकृष्ण आडवाणी ने हवाला कारोबारी एसके जैन से दो करोड़ रुपये लिए। पत्रकार दिनकर शुक्ल ने यह बात पकड़ ली और इसे जनसत्ता अखबार में जगह दे दी। इसके बाद उन्होंने सीबीआई चीफ केविजय रामाराव का इंटरव्यू किया और पूछ लिया कि क्या एसके जैन की डायरी मामले में कार्रवाई होग।

एसके जैन की डायरी के नाम जब बाहर आए तो इसमें 55 नेता, 15 अधिकारी और अन्य को मिलाकर 92 नाम थे। इस हवाला केस में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, शरद यादव और विद्या चरण शुक्ल पर भी आरोप लगे थे। लालकृष्ण आडवाणई पर 60 लाख रुपये लेने का आरोप था। 1995 में सीबीआई ने एसके जैन को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद एसके जैन ने कबूल किया कि 1991 में मार्च से मई के बीच पूर्व पीएम राजीव गांधी को भी चार करोड़ रुपये दिए गए।

चार्जशीट में आडवाणी का नाम
16 जनवरी 1996 को जब मामले की चार्जशीट दायर हुई तो इसमें एलके आडवाणी और विद्याचरण शुक्ल का नाम था। इसके बाद आडवाणी ने लोकसभा से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया। अटल बिहारी वाजपेयी नहीं चाहते थे कि वह इस्तीफा दें। उन्होंने इस्तीफा देते हुए ऐलान कर दिया कि जब तक भ्रष्टाचार के आरोपों से उन्हें मुक्ति नहीं मिल जाएगी तब तक सदन में कदम नहीं रखेंगे। इसके बाद उन्होंने 1996 का चुनाव नहीं लड़ा।

बेदाग छूटे आडवाणी
8 अप्रैल 1997 को हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया और एलके आडवाणी और विद्या चरण शुक्ल को बाइज्जत बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि डायरी को सबूत नहीं माना जा सकता है। यह दस्तावेजों का एक पुलिंदा भर है जिसमें जब जो चाहो जोड़ दो और जो चाहो घटा दो। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन शीर्ष् न्यायालय ने भी हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। इसके बाद आडवाणी ने 1998 में लोकसभा का चुनाव गांधीनगर से लड़ा। कांग्रेस के पीके दत्ता के सामने उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। वह तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *