प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में भर्ती का रास्ता साफ हो गया है। आरक्षण निर्धारण के लिए 2019 में किए गए शासनादेश के चलते इन मेडिकल कॉलेजों में भर्ती नहीं हो पा रही थी। चिकित्सा शिक्षा विभाग अधियाचन भी नहीं भेज पा रहा था।राजकीय मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर अन्य सभी चिकित्सा संस्थानों को एक इकाई मानते हुए ही आरक्षण तय होगा। पहले इन संस्थानों में विभागवार आरक्षण तय करने की व्यवस्था थी।दरअसल केजीएमयू, राममनोहर लोहिया सहित अन्य सभी चिकित्सा संस्थानों में पहले जितने विभाग थे, उनका अलग-अलग आरक्षण तय किया जा रहा था। इससे शैक्षणिक पदों पर सीधी भर्ती में दिक्कत आ रही थी। इस समस्या के निदान के लिए वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने शासनादेश जारी किया था। 27 सितंबर 2019 को जारी इस शासनादेश में चिकित्सा शिक्षा संस्थानों या विश्वविद्यालयों अथवा मेडिकल कॉलेजों में शैक्षणिक पदों पर सीधी भर्ती की व्यवस्था तय की गई थी।विभाग के सभी चिकित्सा संस्थानों को एक इकाई मानते हुए शैक्षणिक पदों पर सीधी भर्ती पर आरक्षण लागू किए जाने का निर्णय लिया गया था। इस शासनादेश में राजकीय मेडिकल कॉलेजों को भी भूलवश शामिल कर लिया गया। इस कारण हर सरकारी मेडिकल कॉलेज अलग इकाई हो गया जबकि उनमें पहले से शैक्षणिक संवर्ग के पद राज्य स्तरीय संवर्ग के हैं।
शैक्षिक संस्था अधिनियम का दिया हवाला
प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा पार्थ सारथी सेन शर्मा द्वारा जारी इस शासनादेश में महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा को आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। नये शासनादेश में विधायी अनुभाग द्वारा पांच मार्च 2021 को जारी उत्तर प्रदेश शैक्षिक संस्था (अध्यापक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम का भी हवाला दिया गया है। उस अधिनियम के अनुसार जिन सरकारी संस्थाओं में सरकार द्वारा राज्य स्तरीय संवर्ग सृजित किया गया हो, उन्हें एक संयुक्त इकाई माना गया है। राज्य सरकार के अधीन संचालित राजकीय मेडिकल कॉलेज भी इसी श्रेणी में आते हैं।