पांच राज्यों की चुनावी तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी अभियान अपनी पूरी रंगत में आ गया है। ये चुनाव किसी अन्य विधानसभा चुनाव से ज्यादा महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं क्योंकि इसे लोकसभा चुनाव के पहले सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। इन राज्यों में जीत दर्ज कर कांग्रेस 2024 में मजबूत दावेदारी पेश करने की कोशिश करेगी तो भाजपा इन राज्यों में बढ़त हासिल कर अगले लोकसभा चुनाव में भी अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहेगी। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन पांच राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम) में देश के कुल विधायकों के लगभग छठवें हिस्से (679 विधायकों) का चुनाव होना है। इसमें कुल मतदाताओं का लगभग छठवां हिस्सा (16 करोड़ से ज्यादा) हिस्सा लेगा जिसमें महिलाओं और पहली बार वोट करने वाले 60 लाख युवा मतदाताओं की बड़ी हिस्सेदारी रहने वाली है। इन राज्यों में उत्तर भारत, दक्षिण भारत और पूर्वाोत्तर राज्यों का भी प्रतिनिधित्व शामिल है। ऐसे में एक छोटे प्रतिशत के रूप में राष्ट्रीय चुनावों के तौर पर एक बड़ा सैंपल हो सकता है जो देश का मूड बताने के लिए पर्याप्त होगा। माना जा सकता है कि इन राज्यों के चुनाव परिणाम काफी हद तक देश का मूड बताने के लिए पर्याप्त होंगे कि अगले लोकसभा चुनाव के क्या परिणाम हो सकते हैं। यही कारण है कि इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। कुछ राष्ट्रीय संदर्भों को छोड़ दें तो इन विधानसभा चुनावों को उन्हीं मुद्दों पर लड़ा जा रहा है जिन पर लोकसभा चुनाव लड़े जाने की संभावना है। कांग्रेस ने अपनी कार्य समिति में सर्वसम्मति से निर्णय ले लिया है कि वह जहां भी सरकार में है, वहां जातिगत जनगणना कराएगी। केंद्र में सत्ता में आने पर राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने का पार्टी ने वादा कर दिया है। राहुल गांधी ने कह दिया है कि पिछड़ी जातियों को उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अधिकार देने के लिए कांग्रेस आरक्षण की ऊपरी सीमा को भी बढ़ाने का काम करेगी। लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी, यह तय हो गया है। भाजपा इन विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी सरकार के 9 साल के कामकाज की चर्चा कर रही है। केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं पर जनता के बीच बहस की जा रही है। मोदी के शासन में कश्मीर और उत्तर-पूर्व के कुछ मामलों को छोड़कर देश के ज्यादातर हिस्सों में आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद का साया नहीं पड़ा। लोकसभा-विधानसभाओं में महिला आरक्षण देने और ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय के लिए किए गए कामकाज भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर हैं। माना जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में भी इन्हीं मुद्दों पर दांव लगाएगी।