पीएम मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर संसद में अपनी बात रखी। इस दौरान उनके निशाने पर कांग्रेस पार्टी रही। लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार के कार्यकाल का ये आखिरी सत्र है। ऐसे में सदन में सियासत खूब गरम है। विपक्ष मोदी सरकार को घेरने की कोशिश में लगा है, तो बीजेपी भी विपक्ष पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे। मैंने हमेशा कहा है कि देश को एक अच्छे विपक्ष की जरूरत है। मैं देख रहा हूं कि से बहुत लोग चुनाव लड़ने का हौसला भी खो चुके हैं। मैंने सुना है बहुत लोग सीट बदलने की फिराक में हैं। बहुत लोग लोकसभा के बदले अब राज्य सभा में जाना चाहते हैं। वे विपक्ष के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे। मैंने हमेशा कहा है कि देश को एक अच्छे विपक्ष की जरूरत है।पीएम मोदी ने लोकसभा में कहा कि कांग्रेस ने देश के सामर्थ्य पर कभी भी विश्वास नहीं किया। वे अपने आप को शासक मानते रहे। जनता जनार्दन को छोटा आंकते रहे। देश के नागरिकों को कैसे सोचते हैं, मैं नाम बोलूंगा तो उनको चुभन होगी। 15 अगस्त को लालकिले से नेहरू ने कहा था- हिंदुस्तान में मेहनत करने की आदत आमतौर पर नहीं है। हम इतना काम नहीं करते, जितना यूरोप, जापान या चीन और अमेरिका वाले करते हैं। यह न समझिए कि वह कौमें कोई जादू से खुशहाल हो गई। वे मेहनत और अक्ल से हुई हैं। पीएम मोदी ने नेहरू पर वार करते हुए कहा कि वे भारत के लोगों को नीचा दिखाकर उनको सर्टिफिकेट दे रहे थे। नेहरू जी की भारतीयों के लिए सोच थी कि वे आलसी और कम अक्ल के लोग होते हैं। इंदिरा जी की सोच भी इससे ज्यादा अलग नहीं थी। इंदिरा जी ने जो लालकिले से 15 अगस्त को कहा था- दुर्भाग्यवश हमारी आदत यह है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने को होता है तो हम आत्मतृष्टि की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। और जब कोई कठिनाई आ जाती है तो हम नाउम्मीद हो जाते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है कि पूरे राष्ट्र ने ही पराजय भावना को अपना लिया है।पीएम मोदी ने कहा कि हम किस परिवारवाद की चर्चा करते हैं। अगर किसी परिवार में अपने बलबूते पर जनसमर्थन से एक से अधिक लोग अगर राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति करते हैं तो उसको हमने कभी परिवारवाद नहीं कहा। हम उस परिवारवाद की चर्चा करते जो पार्टी परिवार चलाती है। जो पार्टी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देती है। जिस पार्टी के सारे निर्णय परिवार के लोग की करते हैं। वे परिवारवाद है। राजनाथ सिंह और अमित शाह की कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है। इसलिए जहां एक परिवार को पार्टियां लिखी जाती है वे लोकतंत्र में उचित नहीं है। एक परिवार के 10 लोग राजनीति में आए कुछ बुरा नहीं है।नौ दिन चले, अढाई कोस। मुझे लगता है कि यह कहावत पूरी तरह से कांग्रेस पर फिट बैठती है। कांग्रेस की सुस्त रफ्तार का कोई मुकाबला नहीं है। आज देश में जिस रफ्तार से काम हो रहा है, कांग्रेस सरकार इस रफ्तार की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।