मध्य प्रदेश के चुनाव में भाजपा एक अलग रणनीति से उतर रही है। चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा चार सांसदों को भी मैदान में उतारा गया है।भाजपा के इस कदम से तमाम लोगों को चौंकाया है। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि यह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए एक बड़ा संकेत है। अगर भाजपा आगे जीतती है कि वह सीएम पोस्ट के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार कर सकती है। इन सबके बीच अगर गौर करें तो भाजपा की यह बिल्कुल नई भी नहीं है।
पहले भी आजमा चुकी है पैंतरे
भाजपा चुनाव जीतने के लिए ऐसे पैंतरे पहले भी आजम चुकी है। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को उस वक्त के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ राघौगढ़ से मैदान में उतारा गया था। तब शिवराज चार बार सांसद रह चुके थे। उस साल भाजपा ने तो चुनाव जीत लिया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान हार गए थे। इसके बाद साल 2004 में शिवराज को फिर से लोकसभा भेज दिया गया। हालांकि अगले ही साल उन्हें वापस बुलाकर मुख्यमंत्री की गद्दी दी गई और उन्होंने बुधनी से विधानसभा उपचुनाव में जीत भी हासिल की। कुछ ऐसा ही मामला असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के साथ भी रहा है। साल 2014 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री बने। लेकिन दो साल बाद वह मजुली से विधानसभा चुनाव जीते और फिर मुख्यमंत्री बने।
सीएम का फैसला चुनाव बाद
मध्य प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारने के पीछे पार्टी की मंशा एक रणनीतिक संदेश देने की है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एक भाजपा नेता ने बताया कि इसके जरिए यह दिखाया जा रहा है कि सीएम का फैसला चुनाव के बाद ही होगा। एक अन्य भाजपा नेता ने बताया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं ले रही है। चाहे पार्टी चुनाव जीते या हारे, लेकिन हम पूरी शिद्दत के साथ लड़ेंगे। मध्य प्रदेश में भी बड़े नेताओं को मैदान में उतारकर यही संदेश दिया जा रहा है कि यहां का चुनाव किसी भी कीमत पर जीतना है।
सामाजिक संदेश देने की कोशिश
पार्टी की अंदरूनी जानकारी रखने वाले एक अन्य शख्स ने बताया कि इन बड़े नामों को मैदान में उतारना बड़ा सामाजिक संदेश भेजना भी है। उन्होंने कहा कि चंबल की ठाकुर बिरादरी के लोगों को लगेगा कि तोमर के पास मौका है। आदिवासी समुदाय को उम्मीद रहेगी कि फग्गन सिंह कुलस्ते के सिर सीएम का ताज सज सकता है। वहीं, ओबीसी लोधी पटेल के रूप में अपना उम्मीदवार देखेगा, जबकि मालवा के लोगों को लगेगा कि कैलाश विजयवर्गीय नए सीएम हो सकते हैं। बता दें कि कैलाश विजयवर्गीय खुद को चुनावी मैदान में उतारे जाने से खुश नहीं हैं। हालांकि एक कार्यकर्ता ने कहा कि उनके पास मुख्यमंत्री बनने का मौका है।
लगातार हो रहे प्रयोग
एक भाजपा नेता ने बताया कि पिछले कुछ वक्त से मोदी का मंत्र चुनाव में प्रयोग का रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में एक भी मौजूदा पार्षद को टिकट नहीं दिया। वहीं, साल 2019 में छत्तीसगढ़ में 10 मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए गए। इसी तरह से गुजरात में विजय रूपाणी और उनकी कैबिनेट ने 2022 के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले ही इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं, रुपाणी और उनके डिप्टी सीएम नितिन पटेल को विधानसभा चुनाव में टिकट तक नहीं दिया गया।