महागठबंधन के मुकेश सहनी से कितना मल्लाह वोट बचाएंगे जेडीयू के मदन सहनी और बीजेपी के हरि सहनी?

भी एनडीए, कभी महागठबंधन में शामिल होने की अटकलों के बीच आखिरकार विकासशील इंसान पार्टी के चीफ मुकेश सहनी ने आज बिहार ग्रांड अलायंस का दामन थाम लिया है। आरजेडी के साथ बनी सहमति के तहत मुकेश सहनी की वीआईपी तीन सीटों पर चुनाव लड़ेगी।जिसमें गोपालगंज, मोतीहारी और झंझारपुर की सीटें शामिल हैं। आरजेडी ने अपने कोटे की 3 सीटें सहनी की वीआईपी को दी हैं। और खुद अब 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बिहार में मल्लाह वोट बैंक को लेकर सियासी खींचतान बहुत पुरानी है। सहनी 14 फीसदी मल्लाह आबादी होने का दावा करते आएं हैं। जबकि दूसरे दल 7 फीसदी की बात कहते हैं। जबकि 2023 में बिहार की जातीय गणना के आंकड़ों के मुताबिक मल्लाह जाति की आबादी करीब 34 लाख से ज्यादा है। जो बिहार की कुल आबादी का 2.6 फीसदी है।

मल्लाह वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कवायद बिहार की सभी पार्टी करती आई हैं। फिर चाहे वो बीजेपी हो, नीतीश की जेडीयू हो, या फिर अब महागठबंधन नें शामिल वीआईपी। मुकेश सहनी निषाद आरक्षण की आवाज बुलंद करते रहे हैं। और कहते रहे हैं, कि जो निषादों को आरक्षण देगा, हम उसके साथ हैं। सहनी पूरे बिहार में निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा भी निकाल चुके हैं। बीजेपी ने जहां हरि सहनी पर दांव खेला, तो वहीं जेडीयू ने मदन सहनी पर और वीआईपी चीफ मुकेश सहनी पहले से ही मैदान में हैं। और ये तीनों ही दरभंगा के है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुकेश सहनी, हरि और मदन सहनी से मल्लाह वोट बचा पाएंगे।

बात अगर हरि सहनी की करें तो बीते साल बीजेपी ने हरि सहनी को विधान परिषद में नेता विपक्ष बनाया था, जो दरभंगा से ही आते हैं। हालांकि बहादुरनगर सीट से 2015 में आरजेडी के भोला यादव से हार गए थे। जिसके बाद उनकों विधान परिषध शिफ्ट किया गया और फिर नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। बिहार की एनडीए सरकार में वो अभी कैबिनेट मंत्री भी हैं। वहीं दूसरी तरफ जेडीयू ने मुकेश सहनी की काट के तौर पर मदन सहनी को आगे बढ़ाने का काम किया है। 2020 में बहादुरनगर सीट से मदन सहनी ने जीत दर्ज की थी। और पहले भी महागठबंधन की सरकार में मंत्री थे। और अब भी एनडीए सरकार में भी मंत्री हैं। पहले गौरा बौराम सीट से जेडीयू के विधायक बने थे।

लेकिन भाजपा के हरि सहनी और जेडीयू के मदन सहनी से ज्यादा दमदार वीआईपी चीफ मुकेश सहनी नजर आते है। इसकी वजह पैसा और ग्लैमर है, जो उन्हें इन दोनों से ज्यादा प्रभावी बनाता है। निषाद संकल्प यात्रा पर जिस चलते-फिरते फाइव स्टार होटल वाले रथ पर मुकेश सहनी निकले थे। तो उसकी बहुत चर्चा हुई थी। जिसकी अनुमानित कीमत करीब 3 करोड़ रूपए बताई गई थी। जो हर लग्जरी सुविधाओं से लैस था। जिस पर सवार हो कर सहनी ने बिहार-यूपी और झारखंड की 80 सीटों का दौरा किया था।

जिसका नारा था बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में निषादों ने ललकारा है, आरक्षण नहीं…तो गठबंधन नहीं…गठबंधन नहीं तो वोट नहीं। महागठबंधन में शामिल होने से पहले मुकेश सहनी के एनडीए के साथ जाने की चर्चाओं को भी बल मिला था। और दिल्ली में उन्होने भाजपा के शीर्ष नेताओं से मुलाकात भी की थी। लेकिन सीटों पर बात नहीं बन पाई। जिसके बाद अब महागठबंधन में 3 सीटों पर दावा ठोंककर शामिल हो गए हैं।

दरअसल बिहार की राजनीति में निषाद जाति बड़ा वोट बैंक माना जाता है। जिनकी आबादी पासवान समेत कई दूसरी जातियों से काफी ज्यादा है। और यही वजह है कि हर पार्टी निषादों को अपने पक्ष में करने के लिए उनकी जाति के नेताओं को दोनों हाथ खोलकर स्वागत करता नजर आता है। फिर चाहे वो बीजेपी के हरि सहनी हो, या फिर जेडीयू के मदन सहनी।

वैसे मुकेश सहनी बीजेपी के अमित शाह की खोज बताए जाते हैं। जब 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें पूरे बिहार में खूब घुमाया था। हालांकि बाद वो भाजपा से अलग होकर खुद की नई पार्टी विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ मिलकर 3 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन तीनों पर हार का सामना करना पड़ा। खगड़िया से खुद मुकेश सहनी भी चुनाव हार गए। उन्हें एलजेपी के महबूब कैसर ने मात दी। इसके बाद 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के साथ सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनने पर पीठ में छुरा घोंपा गया बोलकर एक बार फिर से मुकेश सहनी बीजेपी के पाले में चले गए।

भाजपा ने सहनी की पार्टी को 11 सीटें दी। जिसमें 4 पर वीआईपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। लेकिन मुकेश सहनी की इस चुनाव में भी नहीं जीत पाए। जिसके बाद बीजेपी ने मुकेश सहनी को विधान परिषद भेज दिया। और नीतीश सरकार में मंत्री भी। लेकिन 2022 का चुनाव लड़ने की जिद भारी पड़ गई। सहनी के सारे विधायक बीजेपी में शामिल करा लिए गए। नीतीश कैबिनेट से मुकेश सहनी की भी छुट्टी कर दी गई।

फिलहाल अब लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए और महागठबंधन दोनों की नजर मल्लाह यानी निषाद वोट बैंक पर है। बीजेपी की ओर से हरि सहनी और जेडीयू की ओर मदन सहनी को मल्लाहों का चेहरा बताया जा रहा है। तो वहीं महागठबंधन ने मुकेश सहनी को शामिल करके बड़ा दांव खेला है। ऐसे में देखना होगा कि निषाद वोट बैंक में अपनी तरफ शिफ्ट करने में कौन कितना कामयाब होता है।

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