पूर्णिया से लोकसभा लड़ने के लिए अपनी नौ साल पुरानी जन अधिकार पार्टी (जाप) का कांग्रेस में विलय कर चुके राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव आखिरकार लड़ ही गए। नाम वापसी का दिन बीत गया लेकिन निर्दलीय पप्पू यादव ने पर्चा वापस नहीं लिया।चुनाव आयोग ने पप्पू यादव को चुनाव चिह्न के तौर पर कैंची थमा दिया है जो उनकी पार्टी जाप का भी सिंबल था। बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने पप्पू से नाम वापस लेने कहा था लेकिन पप्पू ना सिर्फ पूर्णिया से लड़ने पर अड़ गए बल्कि कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता लालू यादव और तेजस्वी यादव से भी भिड़ गए हैं। पप्पू पूर्णिया से तीन बार सांसद रह चुके हैं जिसमें दो बार निर्दलीय और एक बार समाजवादी पार्टी से जीते जिसका वहां कोई प्रभाव नहीं है।
लालू यादव ने महागठबंधन में पूर्णिया लोकसभा सीट कांग्रेस से लेकर आरजेडी की तरफ से बीमा भारती को लड़ाया है जो इसी लोकसभा के अंदर रुपौली विधानसभा सीट से पांच बार एमएलए रह चुकी हैं। बीमा इस इलाके के बाहुबली अवधेश मंडल की पत्नी हैं। तेजस्वी ने पूर्णिया को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। पहले फेज की चार सीटों में यह इकलौती सीट है जहां तेजस्वी खुद आरजेडी कैंडिडेट के नामांकन में गए थे। तेजस्वी ने पप्पू यादव के सवाल पर कहा था कि जो हमारे खिलाफ है वो भाजपा के साथ है।
एनडीए में भाजपा ने यह सीट जेडीयू के खाते में डाली है जिसकी तरफ से लगातार दो बार से सांसद संतोष कुशवाहा फिर से मैदान में हैं। नाम वापसी का 8 अप्रैल को आखिरी दिन था लेकिन पप्पू यादव ने नामांकन वापस नहीं लिया। अब संतोष कुशवाहा, बीमा भारती और पप्पू यादव समेत कुल सात कैंडिडेट पूर्णिया के 18.90 लाख वोट की अदालत में हैं। नोटा भी एक विकल्प है जिसकी पैरवी बीजेपी के टिकट पर सांसद बने और कांग्रेस के टिकट पर हारे पप्पू सिंह कर रहे हैं।
पप्पू यादव पूर्णिया से तीन बार सांसद रहने के बाद दो बार मधेपुरा से भी लोकसभा पहुंचे हैं जहां पहली बार लालू यादव ने उनको 2004 में तब उप-चुनाव लड़ाया जब दो सीट जीतने के बाद लालू यादव ने छपरा सीट को रखकर मधेपुरा सीट छोड़ दी थी। पप्पू 2014 में भी मधेपुरा से जीते जिसके अगले साल उनको पार्टी ने निकाल दिया और उन्होंने जाप बनाई। उसके बाद पप्पू और उनकी पार्टी चुनाव जीत के लिए तरस रही है। लालू ने पप्पू को अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करके मधेपुरा से लड़ने कहा था लेकिन पप्पू ने मना कर दिया और पूर्णिया लड़ने के लिए कांग्रेस के पास चले गए।
पूर्णिया सीट पर 45 परसेंट मुसलमान वोटर हैं जबकि हिन्दुओं में पांच लाख मतदाता एससी, एसटी, पिछड़ा और अति पिछड़ा हैं। यादव डेढ़ लाख के करीब हैं जबकि ब्राह्मण और राजपूत भी लाख-लाख से ऊपर हैं। लालू ने मुसलमान-यादव के साथ अति पिछड़ा को जोड़ने के लिए जेडीयू से बुलाकर बीमा भारती को टिकट दिया है। संतोष कुशवाहा को नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के नाम पर मिलने वाले वोट पर भरोसा है। पप्पू के पास इस तरह का कोई वोट बैंक नहीं है लेकिन पप्पू इस सीट को पहले तीन बार भी जीत चुके हैं जिसमें दो बार शुद्ध रूप से निर्दलीय और तीसरी बार मुलायम सिंह यादव की सपा के टिकट पर जिसके टिकट का पूर्णिया में कोई मोल नहीं है।
पप्पू को पहले उम्मीद थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट लड़ी कांग्रेस को फिर से ये सीट मिल जाएगी। जब सीट आरजेडी को चली गई तब पप्पू को लगा कि कांग्रेस कम से कम इस सीट पर दोस्ताना मैच के लिए लालू को राजी कर लेगी। दोनों में कुछ नहीं हुआ। उलटे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने साफ कहा कि नाम वापस लें। लेकिन पप्पू ने किसी की नहीं सुनी। अब वो फिर से 1991 में पहुंच गए हैं जब वो पहली बार इस सीट से निर्दलीय लड़े और जीते थे। 26 अप्रैल को पूर्णिया में मतदान है। घमासान तय है। पप्पू यादव की कैंची संतोष कुशवाहा के वोट पर चलती है या बीमा भारती के वोट पर, इसका नतीजा 4 जून को ही मिलेगा।