बिहार के जिस महागठबंधन को दिखाकर नीतीश कुमार ने देश भर में भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन की नींव रखी थी उससे जेडीयू के निकलने के बाद आपस में भयानक खेल चल रहा है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के चुनाव का नामांकन खत्म होने के बाद बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर महागठबंधन की 5 पार्टियों में समझौता हो सका।13 लोकसभा पर दावा कर रही तीन लेफ्ट पार्टियों सीपीआई-माले, सीपीआई और सीपीएम को 5 सीट मिली है और वो अपनी हैसियत के हिसाब से पर्याप्त सीट पाकर खुश हैं। असल में खेल हुआ है आरजेडी और कांग्रेस के बीच जो क्रमशः 26 और 9 सीटों पर लड़ेगी।आरजेडी और कांग्रेस और फिर कांग्रेस के अंदर चल रहे खेल के सबसे बड़े शिकार बने हैं पूर्णिया से लड़ने को बेताब पप्पू यादव और बेगूसराय लड़ने का मौका गंवा चुके कन्हैया कुमार। पप्पू यादव की पार्टी जाप के कांग्रेस में विलय से प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह असहज हैं। पप्पू आक्रामक राजनीति करते हैं और हमेशा सड़क पर नजर आते हैं। अखिलेश कमरे के अंदर की राजनीति के उस्ताद हैं। पप्पू का आना कांग्रेस में उन्हें खुद के लिए एक खतरा नजर आ रहा है।
लालू यादव भी पप्पू यादव को तेजस्वी यादव के भविष्य के लिए सतर्क तरीके से देखते हैं। लालू ने पप्पू यादव को उनकी पार्टी जाप का आरजेडी में विलय करके मधेपुरा सीट से लड़ने कहा था लेकिन पप्पू पूर्णिया में लगे हैं। पप्पू यादव 2019 में मधेपुरा में बुरी तरह हारे थे। एक लाख से कम वोट आया था। आरजेडी से लड़े शरद यादव को जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने 3 लाख से ज्यादा के अंतर से हराया था। इसलिए पप्पू यादव मधेपुरा नहीं जाना चाहते और पूर्णिया से 4 अप्रैल को नामांकन का ऐलान भी कर दिया है।कन्हैया कुमार की तो बात तो सब लोग खुले तौर पर करते हैं कि तेजस्वी के सामने कोई दूसरा युवा नेता ना दिखे इसलिए उन्हें बिहार में कम दिखने दिया जाता है। लोग तो यहां तक कहते हैं कि जब 2019 में कन्हैया कुमार बेगूसराय से लड़े तो लालू ने सीपीआई को सीट या समर्थन नहीं दिया (लेफ्ट गठबंधन अलग से लड़ा था लेकिन आरा में माले को आरजेडी ने समर्थन दिया और बदले में पाटलिपुत्र में समर्थन लिया) लेकिन इस बार कन्हैया को कांग्रेस वहां से ना लड़ा दे इसलिए सीट सीपीआई को देकर सीट बंटवारे से पहले डी राजा से पटना में कैंडिडेट का ऐलान करवा दिया गया।महागठबंधन में सीट बंटवारे की औपचारिकता पूरी होने के बाद एकमात्र लिस्ट सीपीआई-माले की आई है। कांग्रेस की सूची का इंतजार चल रहा है। सीपीआई, सीपीएम पहले ही कैंडिडेट घोषित कर चुके। आरजेडी का सिंबल बिना लिस्ट के धीरे-धीरे बंट ही रहा है। दूसरे चरण के लिए पांच सीटों पर नामांकन का 4 अप्रैल को आखिरी दिन है। इस चरण में किशनगंज, कटिहार और भागलपुर कांग्रेस को मिली जबकि पूर्णिया और बांका आरजेडी ने अपने पास रखा है।
आरजेडी ने पूर्णिया से बाहुबली अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती और बांका से लालू के पुराने वफादार जयप्रकाश नारायण यादव को टिकट दिया है। कांग्रेस कैंडिडेट चुनने के लिए दिल्ली में बैठक हो चुकी है लेकिन अंतिम फैसला होना बाकी है या फैसले के हिसाब से सबको मनाकर ऐलान करना बाकी है। चर्चा है कि कटिहार से तारिक अनवर और किशनगंज से मौजूदा सांसद मोहम्मद जावेद का टिकट तय है। भागलपुर सीट पर कांग्रेस के अंदर पटना से दिल्ली तक घमासान मचा है।बिहार में कांग्रेस के बड़े नेता और भागलपुर से लगातार तीसरी बार विधायक बने अजीत शर्मा लोकसभा की इस सीट के लिए स्वाभाविक दावेदार हैं। भागलपुर विधानसभा सीट से 2005 और पटना साहिब विधानसभा से 2020 में कांग्रेस के टिकट पर लड़कर हार चुके पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष प्रवीण कुशवाहा दूसरे दावेदार हैं जो जेडीयू के अजय मंडल से सीट छीनना चाहते हैं। लालू के करीबी रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह पश्चिम चंपारण से लेकर मुजफ्फरपुर और भागलपुर तक अपने बेटे आकाश सिंह का नाम बढ़ा रहे हैं। लेकिन इस सीट से अब जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में आ चुके कन्हैया कुमार का नाम भी रेस में शामिल हो गया है।
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के नामांकन के लिए अब तीन दिन और बचे हैं इसलिए कांग्रेस की लिस्ट भी अब आने ही वाली होगी। पसंद की सीटों के लिए लालू ने कांग्रेस को जिस तरह तरसाया है उसके जवाब में अगर राहुल गांधी की टीम भागलपुर से कन्हैया को लड़ा देती है तो ये आरजेडी और कांग्रेस के खेल में नया मोड़ लाएगा। सीट बंटवारे में आरजेडी के रवैये से कांग्रेसियों में मायूसी है। इस्तीफे हो रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की निराशा तोड़ने के लिए पार्टी नेतृत्व कोई मैसेज देने की सोचती है कि लालू को करारा जवाब दिया तो कन्हैया की किस्मत चमक सकती है। नहीं तो यू-ट्यूबर मनीष कश्यप ने कहा ही है कि कन्हैया की बिहार में नो एंट्री है।