कनाडा में हिंदूफोबिया के खिलाफ कानून की मांग तेज, समर्थन में हुजूम; अभियान तेज

नाडा में हिंदूफोबिया के खिलाफ शुरू की गई पेटिशन को जबर्दस्त समर्थन मिला है। इसके पक्ष में 25 हजार लोगों ने सिग्नेचर किया है, जबकि सरकार के पास भेजने के लिए इसे मात्र 500 लोगों के सिग्नेचर की ही जरूरत थी।यह पेटिशन 19 जुलाई को लांच की गई थी और मंगलवार को इसका आखिरी दिन था। इसे सिविल एंड ह्यूमन राइट्स कैटेगरी में रखा गया था। इस पेटिशन को सांसद मेलिसा लैंट्समैन लेकर आई थीं, जो कि हाउस ऑफ कॉमंस में विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी की उपनेता हैं।

चिंता का विषय
इस याचिका की शुरुआत एक भारतीय-कनाडाई संस्थान, कनाडियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर हिंदू हेरिटेज एजुकेशन द्वारा की गई थी। याचिका को मिले रिस्पांस पर खुशी जताते हुए संस्थान के निदेशकों में से एक विजय जैन ने कहा कि यह अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की पहली याचिका है। इसके पक्ष में 25000 से अधिक लोगों के सिग्नेचर, जो कुल आबादी का 2.5 प्रतिशत से अधिक है, यह दर्शाता है कि यह बड़ी चिंता का विषय है। हम समुदाय से इस तरह की शानदार भागीदारी देखकर बहुत खुश हैं। यह अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के मानवाधिकारों का मामला है।

ब्रैम्पटन में पास हो चुका है प्रस्ताव
जैन ने आगे कहा कि इस साल की शुरुआत में ब्रैम्पटन में नगर परिषद ने सर्वसम्मति से हिंदूफोबिया को मान्यता देने वाला एक ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने कहा कि हमें पूरी उम्मीद है कि यह संघीय संसद में भी पारित हो जाएगा। याचिका में सदन से मांग की गई है कि हिंदूफोबिया को मानवाधिकार संहिता की शब्दावली में एक शब्द के रूप में मान्यता दी जाए। इससे हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह और भेदभाव का वर्णन किया जा सकेगा। इसके अलावा हिंदूफोबिया को हिंदुओं, हिंदू धर्म या हिंदुत्व के खिलाफ इनकार, निषेध, पूर्वाग्रह या अपमान के रूप में परिभाषित किया जा सके। साथ ही इसको लेकर जागरूकता बढ़ाई जा सके और सिस्टम या संस्थान में हिंदूफोबिया पर ध्यान दिया जा सके।

पन्नू के वीडियो के बाद पकड़ा जोर
इस याचिका ने तब जोर पकड़ा जब अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस द्वारा पिछले महीने भारतीय मूल के कनाडाई हिंदुओं को निशाना बनाते हुए एक वीडियो जारी किया गया। वायरल वीडियो में एसएफजे के वकील गुरपतवंत पन्नू इंडो-हिंदू कनाडा छोड़ दो, भारत जाओ की बातें कह रहा था। पन्नू ने आगे कहा कि आप न केवल भारत का समर्थन करते हैं बल्कि खालिस्तान समर्थक सिखों के भाषण और अभिव्यक्ति के दमन का भी समर्थन कर रहे हैं। साथ ही निज्जर की हत्या का जश्न मनाकर हिंसा को भी बढ़ावा दे रहे हैं। एसएफजे के वीडियो के अलावा, कई उदाहरण हैं जब कनाडा में मंदिरों और भारत के वरिष्ठ राजनयिकों को निशाना बनाया गया।

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