इजरायल का नाम सुनते ही क्यों जल-भुन जाता है पाकिस्तान? बांग्लादेश गठन से क्या कनेक्शन

हमास-इजरायल युद्ध में पाकिस्तान ने खुलकर इजरायल का विरोध किया है और अन्य अरब मुस्लिम देशों के साथ जा खड़ा हुआ है। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब पाकिस्तान ने इजरायल का विरोध किया है।पाकिस्तान इजरायल का गठन होने से पहले से ही उसका विरोध करता आ रहा है। 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन बंटबारे का प्रस्ताव आया था, तब भारत के साथ-साथ पाकिस्तान ने भी उसका विरोध किया था। भारत जहां धर्म के आधार पर किसी देश के बंटवारे का विरोध कर रहा था, वहीं पाकिस्तान मुस्लिम देश होने का फर्ज निभा रहा था और मुस्लिम बहुल फिलिस्तीन का साथ दे रहा था।

1948 में इजरायल को एक स्वतंत्र देश का दर्जा मिलने के बाद भारत ने 1950 में उसे एक संप्रभु देश के तौर पर मान्यता दे दी लेकिन पाकिस्तान आज तक उसे संप्रभु देश नहीं मानता है। लिहाजा, इन दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं। पाकिस्तान ईरान, इराक, सऊदी अरब, बांग्लादेश, भूटान, कुवैत, लेबनान और इंडोनेशिया सहित उन 30 देशों में से एक है, जिन्होंने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने से इनकार कर दिया है।

बांग्लादेश से कनेक्शन क्या है
इजरायल से भारत की दोस्ती भले ढाई-तीन दशक पुरानी हो लेकिन जब भारत और इजरायल के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं थे, तब भी इजरायल ने भारत की मदद की थी। ये बात 1971 की है। इजरायल ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की रक्षा क्षेत्र में बड़ी मदद की थी, जिससे पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया था। श्रीनाथ राघवन की किताब ‘1971’ में 14 दिवसीय युद्ध के बारे में खुलासा किया गया है कि कैसे इजरायल ने भारत की मदद की थी।

उस वक्त इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं और पीएन हक्सर उनके सलाहकार थे। हक्सर एक पूर्व राजनयिक थे। हक्सर की चिट्ठियां, जो नई दिल्ली में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में रखी गई हैं, के आधार पर राघवन ने अपनी किताब में दावा किया कि पीएन हक्सर ने फ्रांस में भारत के तत्कालीन राजदूत डी एन चटर्जी के जरिए इजरायल से हथियारों की खरीद की डील करवाई थी।

चटर्जी ने 6 जुलाई, 1971 को विदेश मंत्रालय को एक नोट के साथ इजरायली हथियार प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें कहा गया था कि हथियार और तेल की खरीद में इजरायल से अमूल्य सहायता मिलेगी। इंदिरा ने तुरंत इसे हरी झंडी दे दी थी और खुफिया एजेंसी रॉ को खरीद प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था।

गोल्डा मेयर का साहसिक कदम
उस वक्त इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर थीं। उन्होंने भारत से रक्षा खरीद के प्रस्ताव पर एक अहम फैसला लेते हुए ईरान जा रहे हथियारों की खेप को भारत भिजवा दिया था। हालांकि इजरायल खुद उस वक्त हथियारों की कमी झेल रहा था, बावजूद इसके गोल्डा मेयर ने ये फैसला लिया था। गोल्डा इजरायल की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। उन्हें भी आयरन लेडी कहा जाता था।

उन्होंने हथियारों के गुप्त हस्तांतरण को संभालने वाली फर्म के निदेशक श्लोमो जबुलडोविक्ज़ के माध्यम से हिब्रू में इंदिरा गांधी को संबोधित करते हुए एक नोट भेजा था, जिसमें हथियारों के बदले में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध शुरू करने का अनुरोध किया गया था। हालाँकि, दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध करीब 20 साल बाद 1992 में स्थापित हुए, जब नरसिम्हा राव प्रधान मंत्री थे।

मुक्ति वाहिनी को पहुंचाया था हथियार

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