हमास को खुला समर्थन और इजरायल को धमकी देने वाले हिजबुल्लाह का चीफ हसन नसरुल्लाह अरब देशों पर मजबूत पकड़ रखता है। नसरुल्लाह के ईरान के अलीखामनेई से बहुत करीबी संबंध हैं। नसरुल्लाह की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह इजरायल को खुली धमकी दे रहा है।हसन नसरुल्लाह की लेबनान में राजनीति पर भी पकड़ है। उसके समर्थक पूरी दुनिया में हैं। उसे इजरायल और अमेरिका के खिलाफ तीखे भाषण देने के लिए भी जाना जाता है। हालांकि वह जल्दी सामने नहीं आता है। लेबनान में भी हिजबुल्लाह को बहुत सारे लोग विवाद में धकेलने वाले संगठन के रूप में जानते हैं।
कौन है नसरुल्लाह?
हसन नसरुल्लाह लेबनान के कट्टरपंती शिया समूह हिजबुल्लाह का मुखिया है। 1960 में जन्मा नसरुल्लाह 15 साल की उम्र में ही राजनीति में आ गया था। लेबनाना में 1975 में गृह युद्ध चल रहा था। उसने अमल मूवमेंट पार्टी जॉइन कर ली थी। इस संगठन की नींव ईरानी मूसा सदर ने रखी थी। इसी दौरान नसरुल्लाह की धार्मिक शिक्षा भी शुरू हो गई। 16 की उम्र में वह इराक चला गया। इराक में भी खूनी खेल चल रहा था। राजनीतिक अस्थिरता थी। सद्दाम हुसैन ने आदेश दिया कि लेबनानी शिया छात्रों को मदरसों से निकाल दिया जाए। इसके बाद नसरुल्लाह लेबनान वापस आ गया। लेबनान वापस आने के बाद वह नसरुल्लाह फिर अमल मूवमेंट में सक्रिय हो गया।
ईरानी नेताओं ने किया समर्थन
हसन नसरुल्लाह ईरान के नेताओं के साथ संपर्क में था। ईरान ने लेबनान के शिया समुदाय के साथ संबंध को वरीयता दी तो मध्यस्थता का काम नसरुल्लाह को मिल गया। लेबनान में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी लड़के रहते थे। इसी बीच इजरायल ने लेबनान पर हमला किया। इसके बाद ईरान के फौजी कमांडरों ने लेबनान में एक समूह बनाया। इसी का नाम हिजबुल्लाह रखा गया। इसमें हसन नसरुल्लाह भी शामिल था। उस वक्त नसरुल्लाह की उम्र 22 साल थी।
नसरुल्लाह ईरान से संपर्क साधे रहा और हिजबुल्लाह में शामिल रहा। बाद में ईरान ने उसे ईरान में हिजबुल्लाह की जिम्मेदारी दे दी। लेबनान में हिजबुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी अब्बास मूसवी की हत्या के बाद हिजबुल्लाह का नेतृत्व हसन नसरुल्लाह के पास आ गया। वहीं लेबनान की संसद में हिजबुल्लाह ने आठ सीटें जीत लीं। जब लेबनान में गृह युद्ध समाप्त हुआ तो हिजबुल्लाह की लोकप्रियता भी बढ़ी। वह ईरान से मदद लेता था और इजरायल और अमेरिका के खिलाफ सैनिकों को तैयार करता था।
जब 2000 में इजरायल ने लेबनान के कब्जे वाले इलाके छोड़ने का ऐलान किया तो इसका क्रेडिट हसन नसरुल्लाह को दिया गया। इसके बाद 2004 में इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच एक समझौता हुआ। इसके तहत फिलिस्तीनी और लेबनानी कैदियों को इजरायल ने मुक्त किया। इसे भी हिजबुल्लाह की जीत की तौर पर देखा गया। हिजबुल्लाह का लेबनान के टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम पर कंट्रोल था। जब लेबनान की सरकार ने इसे वापस लेने की कोशिश की तो हिजबुल्लाह ने सैनिक कार्रवाी करके बेरूत पर कंट्रोल कर लिया।
अब लेबनान में हसन नसरुल्लाह की काफी पकड़ है। वह अपने दशकों के संघर्ष के नाम पर लोकप्रियता बनाने में कामयाब रहा है। वह लेबनान में एक राजनीतिक और सैनिक नेता के तौर पर पहचान बनाए हुए है।