हिंदी पत्रकारिता दिवस और हमारी चुनौतियाँ

जेम्स ऑगस्टस हिक्की को देश में स्वतंत्र प्रेस की परंपरा स्थापित करने में अग्रणी भूमिका के लिए भारतीय पत्रकारिता के जनक के रूप में जाना जाता है। 1780 में, जब उन्होंने कलकत्ता से बंगाल गजट लॉन्च किया, तब जनसंचार के माध्यम के रूप में समाचार पत्र भारत में अनसुने थे।आज यानी 30 मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के लिए खास है। इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिस पत्रकारिता को आज हम देख रहे हैं वह अपने साथ एक लंबा इतिहास समेटे हुए है। हिंदी पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास में कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल के ‘उदन्त मार्तण्ड’ अखबार का अहम योगदान है। हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाते समय हम सवालों से घिरे हैं और जवाब नदारद हैं।कुछ दिनों पहले दिनों, देश के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द्वारा आयोजित एक सम्‍मान समारोह में मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि किसी देश को लोकतांत्रिक रहना है, तो प्रेस को स्‍वतंत्र रहना चाहिए। जब प्रेस को काम करने से रोका जाता है, तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता होता है। माननीय मुख्य न्यायाधीश, ऐसा कहने वाली पहली विभूति नहीं हैं। उनसे पहले भी कई बार कई प्रमुख हस्तियां प्रेस और मीडिया की स्‍वतंत्रता को लेकर मिलते-जुलते विचार सार्वजनिक रूप से अभिव्‍यक्‍त कर चुकी हैं। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्‍तम्‍भ कहा जाता है, तो वह अकारण नहीं है। उसने समय-समय पर लोकतांत्रिक मूल्‍यों और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए बहुत काम किया है और इसके लिए बड़ी कीमत भी चुकाई है। इसके बदले उसे समाज का, लोगों का भरपूर विश्‍वास और सम्‍मान भी हासिल हुआ है। लेकिन दुर्भाग्य से बीते दो-तीन दशकों में यह विश्वास लगातार दरकता गया है, सम्‍मान घटता गया है।टती प्रतिष्‍ठा और विश्‍वसनीयता के पीछे बहुत सारे कारण गिनाये जा सकते हैं। सबसे पहला तो यही है कि उदारीकरण की आंधी से पहले जिस मीडिया ने खुद को एक मिशन बनाए रखा था, उसने व्‍यावसायिकता की चकाचौंध में बहुत तेजी से अपना‘कॉरपोरेटाइजेशन’ कर लिया और खुद को ‘मिशन’ की बजाए खालिस ‘प्रोफेशन’ बना लिया। हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर यदि सामाजिक सरोकार रखने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता तथा पीत पत्रकारिता के बारे में बात न हो,तो हिंदी पत्रकारिता दिवस की महत्वत्ता का आंकलन नही किया जा सकता। वर्तमान परिदृश्य में पीत पत्रकारिता की प्रबलता और स्वार्थसाधनी राजनीति निजी महत्वकांक्षा के चलते पत्रकारिता मिशन न रहकर व्यवसाय बन चुका है। स्वतंत्रता संग्राम की ध्वजावाहक रही हिंदी पत्रकारिता वर्तमान समय में अपना अस्तित्व खोने लगी है और यही कारण है कि हमें केवल हर वर्ष 30 मई के दिन ही हिंदी पत्रकारिता का महत्व पता चलता है। हिंदी पत्रकारिता दिवस को मनाने की सार्थकता,हिंदी पत्रकारिता को समझने और मानने से सिद्ध हो सकती है। खबरों में सनसनी परोसना और टीवी चैनलों की दिशाहीन डिबेट की होड़ में प्रिंट मीडिया तथा विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता को अस्तित्व की लड़ाई लडऩी पड़ रही है।हिन्दी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष में पत्रकार जगत से जुड़े महानुभावों को यह प्रण लेना होगा कि जिस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम में स्वाधीनता के उद्देश्य से हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभ हुआ था,इसी प्रकार वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सच्चाई से ओतप्रोत, निर्भिक, निस्वार्थ भाव की पत्रकारिता करके स्वस्थ व सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने का सकारात्मक प्रयास करें तदुपरांत ही आज के दिवस अर्थात हिंदी पत्रकारिता दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।

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