लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर इंडिया अलायंस के घटक दलों में सीट बंटवारे पर संशय बना हुआ है। बिहार में भी महागठबंधन के दलों के बीच सीट शेयरिंग का ऐलान अभी तक नहीं किया जा सका है।
हालांकि, दावा किया जा रहा है कि सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय हो चुका है लेकिन गठबंधन के दो बड़े दलों जेडीयू और राजद के बीच कुछ सीटों को लेकर पेंच फंसता नजर आ रहा है। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि 17-17 सीटों पर जेडीयू और राजद जबकि पांच सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर माले अपना उम्मीदवार उतार सकती है। दावा किया जा रहा है कि घटक दलों के बीच इस पर सहमति बन गई है लेकिन कौन सी सीट किसकी झोली में जाएगी, इस पर घटक दलों के बीच तनातनी बनी हुई है। खासकर जेडीयू और राजद के बीच कम से कम 10 सीटों को लेकर रस्साकशी जारी है।
तकरार वाली 10 सीटें कौन सी हैं?
जिन 10 सीटों को लेकर जेडीयू और राजद के बीच खींचतान है, उनमें नवादा, जहानाबाद, जमुई, बांका, भागलपुर, बक्सर, गोपालगंज, बेगूसराय, सीतामढ़ी और हाजीपुर सीट शामिल हैं। इनमें से अधिकांश सीटें ऐसी हैं, जहां से या तो लोजपा और बीजेपी के उम्मीदवार जीते हैं या अगर जेडीयू के मौजूदा सांसद हैं लेकिन वह सीट पारंपरिक रूप से राजद का स्ट्रन्गहोल्ड रहा है।
सीतामढ़ी, जहानाबाद, गोपालगंज, भागलपुर और बांका ऐसी ही सीटें हैं, जहां मौजूदा समय में जेडीयू के सांसद जीते हुए हैं लेकिन पहले ये सीटें राजद का मजबूत गढ़ रही हैं।
कहां किसका दावा मजबूत?
नवादा लोकसभा सीट पर 2009 से ही एनडीए का कब्जा रहा है। 2009, 2014 में बीजेपी, जबकि 2019 में यहां से लोजपा की जीत हुई थी। इस लिहाज से जेडीयू इस पर स्वभाविक कब्जा चाहती है क्योंकि यह एनडीए खेमे की सीट रही है। दूसरी तरफ राजद का कहना है कि इस सीट पर पहले भी राजद की जीत हुई है और पिछले चुनावों में भी राजद दूसरे नंबर पर रही है। 2014 में जब तीनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था तूब जेडीयू तीसरे नंबर थी।
जहानाबाद लोकसभा सीट पर फिलहाल जेडीयू का कब्जा है। 2014 में इस सीट से रालोसपा के अरुण कुमार की जीत हुई थी, जो उस वक्त एनडीए में थे। राजद के सुरेंद्र यादव इन दोनों चुनावों में दूसरे नंबर थे। राजद का दावा है कि 2014 में जेडीयू ने जब अपने बूते यहां से चुनाव लड़ा था, तब वह तीसरे नंबर पर थी, इसलिए ये सीट राजद को मिलनी चाहिए। जेडीयू का कहना है कि तीन में से दो बार उसके कैंडिडेट यहां जीत चुके हैं।
जमुई सुरक्षित सीट है। यहां से फिलहाल लोजपा के चिराग पासवान सांसद हैं। वह 2014 में भी यहां से जीत चुके हैं लेकिन 2009 में जेडीयू के भूदेव चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी। जेडीयू का दावा है कि इस सीट पर एक बार भी राजद की जीत नहीं हुई है, इसलिए ये सीट उसे मिलनी चाहिए। उधर, राजद का कहना है कि 2014 में उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर आए थे, जबकि जेडीयू के उम्मीदवार तीसरे नंबर थे। हालांकि, इन दोनों के बीच वोट का मार्जिन करीब 1200 का ही था।
बांका सीट पर भी दोनों दलों के बीच रस्साकशी जारी है। फिलहाल इस सीट पर जेडीयू के गिरधारी यादव सांसद हैं। इससे पहले 2014 में जब तीनों प्रमुख दलों (राजद, जेडीयू और बीजेपी के साथ अन्य) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, तब राजद के जयप्रकाश नारायण की जीत हुई थी और बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी।
भागलपुर सीट से अभी जेडीयू के अजय कुमार मंडल सांसद हैं। 2014 में यहां से राजद के शैलेश मंडल उर्फ बुलो मंडल सांसद रह चुके हैं। उससे पहले 2004 और 2009 में यहां से बीजेपी की जीत हुई थी। राजद का यहां भी 2014 वाला चुनावी तर्क है कि तब जेडीयू तीसरे नंबर पर रही थी।
बक्सर सीट से केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे सीटिंग सांसद हैं। वह 2019 और 2014 का भी चुनाव जीत चुके हैं। उससे पहले 2009 में यहां से राजद के जगदानंद सिंह ने चुनाव जीता था। 2014 में भी जगदानंद सिंह दूसरे नंबर रहे थे, जबकि जेडीयू कैंडिडेट इस सीट पर चौथे नंबर पर रहे थे। इसलिए राजद यहां अपना दावा मजबूत बता रहा है।
गोपालगंज भी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है और फिलहाल जेडीयू के आलोक कुमार सुमन सांसद हैं। इससे पहले 2014 में बीजेपी के जनक राम जीते थे। उससे पहले 2009 में जेडीयू के पूर्णमासी राम जीते थे। राजद 2019 में दूसरे नंबर पर रहा था, जबकि 2014 में यह सीट राजद ने कांग्रेस की दी थी। उस वक्त भी कांग्रेस दूसरे नंबर थी, जबकि जेडीयू तीसरे नंबर पर थी।
बेगूसराय सीट पर पिछले चार बार से एनडीए का कब्जा रहा है। इनमें दो बार जेडीयू तो दो बार बीजेपी के कैंडिडेट जीतते रहे हैं। फिलहाल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह वहां से सांसद हैं। 2019 में सीपीआई के कन्हैया कुमार दूसरे नंबर पर रहे थे जबकि राजद के तनवीर हसन तीसरे स्थान पर थे। 2014 में बीजेपी के भोला सिंह ने यहां से मैदान जीता था, जबकि तनवीर हसन दूसरे नंबर पर लालटेन जलाते रह गए थे। इस सीट पर कभी भी राजद की जीत नहीं हुई है लेकिन उसके समर्थित कांग्रेस की जीत हुई है।
सीतामढ़ी सीट दोनों ही दलों का मजबूत गढ़ रहा है। वहां से बारी-बारी से राजद और जेडीयू की जात होती रही है। 1989 से ही यह सीट समाजवादियों का गढ़ रहा है। फिलहाल जेडीयू के सुनील कुमार पिंटू सांसद हैं जो मूलत: बीजेपी नेता हैं लेकिन 2019 में सीट बंटवारे में यह सीट जेडीयू के कोटे में आ गई तो पिंटू ने बीजेपी छोड़कर जेडीयू का दामन थाम लिया। 2014 में इस सीट पर रालोसपा की जीत हुई थी, जबकि 2009 में जेडीयू और 2004 में राजद की जीत हुई है। राजद का तर्क है कि हमेशा वह दूसरे नंबर पर रही है, इसलिए सीट उसे मिलनी चाहिए, जबकि जेडीयू सीटिंग सीट और पहले की जाती के हवाले से अपना दावा मजबूत समझ रही है।
हाजीपुर सीट से फिलहाल लोजपा के पशुपति कुमार पारस सांसद हैं। वह 2014 से लगातार इस सीट से जीत रहे हैं। यह रामविलास पासवान की सीट रही है। हालांकि, 2009 में यहां से जेडीयू के राम सुंदर दास ने जीत दर्ज की थी। राजद ने कभी यहां से जीत दर्ज नहीं की थी लेकिन 2014 के तर्क के हिसाब से जेडीयू यहां तीसरे नंबर की पार्टी थी।