सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी पहल करते हुए सभी हाई कोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों को आदेश दिया है कि वे केस से संबंधित दस्तावेजों में वादी की जाति और धर्म को उजागर ना करें। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा है कि इस तरह से जाति और धर्म के बारे में उल्लेख करना तत्काल बंद कर देना चाहिए।कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा, हमें सुप्रीम कोर्ट या अन्य अदालतों में किसी भी वादी की जाति और धर्म के बारे में बताना जरूरी नहीं लगता है। इसलिए इसको तत्काल बंद करने के लिए आदेश जारी कर दिया गया है।राजस्थान फैमिली कोर्ट के सामने लंबित एक विवाद का केस ट्रांसफर करने की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केस को पंजाब फैमिली कोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया। इस मामले में कोर्ट को देखकर हैरानी हुई की पार्टियों के मेमो में पति और पत्नी जाति के बारे में बताया गया था। इसपर बेंच ने आपत्ति जाहिर की।महिला की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दस्तावेजों में याचिकाकर्ता की जाति के बारे में बताना इसलिए जरूरी हो गया क्योंकि फैमिली कोर्ट के दस्तावेजों में भी यह मेंशन किया गया था। वकील ने कहा कि अगर वह पेपर में जाति के बारे में जानकारी नहीं देता तो कोर्ट रजिस्ट्री की तरफ से आपत्ति भी हो सकती थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अलग से आदेश देते हुए कहा कि किसी भी वादी की जाति और धर्म के बारे में जानकारी नहीं देनी है चाहे उसने निचली अदालतों में इसके बारे में बताया ही क्यों ना हो।कोर्ट ने निर्देश दिया कि तत्काल प्रभाव से वकीलों और कोर्ट रजिस्ट्री को इसका पालन करना है। बेंच ने कहा कि कोर्ट को फैसला लेने के लिए किसी की जाति और धर्म की जानकारी लेने से कोई मतलब नहीं होता है। इसलिए फैसले के टाइटल में भी इसका जिक्र नहीं किया जाना चाहिए।