अयोध्या में राममंदिर निर्माणः योगी आदित्‍यनाथ की तपस्‍या और पांच पीढ़ियों के संकल्‍प की सिद्ध‍ि, खुद खड़ा किया कई आंदोलन

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों के बीच अयोध्या आज दुनिया के मानचित्र पर चमक-दमक रही है। इसका अद्भुत-अलौकिक स्वरूप देख संसार अचंभित है। रामनगरी की ऐसी शोभा और तरक्की की बेमिसाल रफ्तार के पीछे वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और महंत योगी आदित्यनाथ की तपस्या दिखती है।इसी के साथ दिखती है पांच पीढ़ियों के संकल्प की सिद्धि, जो गोरक्षपीठ ने श्रीराम जन्मभूमि के लिए लिया था।

जिस उम्र में ज्यादातर युवा करियर की शुरुआत के लिए कोशिशें कर रहे होते हैं, उस आयु में राममंदिर आंदोलन से प्रभावित होकर अजय सिंह बिष्ट नाम की पहचान के साथ योगी, महंत अवेद्यनाथ से मिलते हैं और फिर संन्यास की राह पर चल पड़ते हैं। सड़क से संसद तक राममंदिर के लिए संघर्ष करते हुए योगी 2017 में सूबे के मुख्यमंत्री बने। सु्प्रीम कोर्ट से राममंदिर के पक्ष में फैसला आने के पहले से ही योगी राज में दुनिया के कोने-कोने तक अयोध्या का प्रकाश पहुंचने लगा था। उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या किया तो पूरी दुनिया में इसकी चर्चा होने लगी। रामनगरी को जिस तरह चमकाना शुरू किया और जब पहली दिवाली पर लाखों दीयों से भव्य दीपोत्सव का शुभारंभ हुआ तो दुनिया को अयोध्या के भविष्य का संकेत मिल गया। यह कहा जाने लगा कि अयोध्या में जरूर कुछ बड़ा होने वाला है। सर्वोच्च अदालत के निर्णय के बाद वह शुभ घड़ी भी आ गई। शिलान्यास से लेकर 22 जनवरी को होने जा रहे प्राण प्रतिष्ठा समारोह तक अपने गुरुजनों की साधना को मूर्त रूप में साकार करने का सौभाग्य योगी आदित्यनाथ को मिल रहा है।

अवेद्यनाथ से मुलाकात के बाद देश के प्रति समर्पण का निर्णय

छात्र जीवन में आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में विद्यार्थी परिषद से जुड़े देश और समाज को समर्पित अजय सिंह बिष्ट ने राममंदिर आंदोलन से प्रभावित होकर 1991 में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ से मुलाकात की। उसके बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि उन्हें अब नाथ पंथ का संन्यासी बनकर धर्म, देश और समाज के लिए जीवन समर्पित कर देना है। इसके बाद वह महंत अवेद्यनाथ के शिष्य बन गए। नाथ पंथ की संन्यास परम्परा के अनुसार उन्हें नया जन्म और नया नाम मिला। वह नाथ पंथ की कठोर दीक्षा परम्परा और उसकी तपस्या पर खरे उतरे। इसके बाद गुरु महंत अवेद्यनाथ ने 1994 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। योगी आदित्यनाथ अपने गुरु के साथ श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की बैठकों में शामिल होने लगे। इन बैठकों में विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू महासभा के नेता और अयोध्या का संत समाज मौजूद रहता था।

गुरु की राजनीतिक पाठशाला में भी पास हुए

गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के 1996 के लोकसभा चुनाव का शिष्य के रूप में उन्होंने सफल संचालन किया और गुरु की राजनीतिक पाठशाला में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। 1998 के लोकसभा चुनाव में गुरु ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्ताधिकारी भी घोषित कर दिया। इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ अपने गुरु की समस्त विधाओं के उत्तराधिकारी हो गए। सांसद बनने के बाद योगी राममंदिर निर्माण आंदोलन, समान आचार संहिता, गोहत्या पर प्रतिबंध, धर्मांतरण पर प्रतिबंध जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर संसद में हमेशा मुखर रहते थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरक्षपीठ द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों में भी ये मुद्दे प्रमुखता से उठाए जाते थे।

विश्व हिंदू महासम्मेलन करा आंदोलन को जीवंत किया

एक समय ऐसा भी आया जब लगने लगा कि राममंदिर आंदोलन धीरे-धीरे राजनीतिक परिदृश्य से हट रहा है। इसी दौरान 13, 14, 15 फरवरी 2003 को विराट हिंदू संगम और 22, 23, 24 दिसंबर 2006 को विश्व हिंदू महासम्मेलन कराकर योगी आदित्यनाथ ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे फिर से जीवंत कर दिया। इन सम्मेलनों में शिरकत करने के लिए आसपास के जिलों से ही नहीं देश के कोने-कोने और नेपाल से बड़ी संख्या में लोग गोरखपुर पहुंचे थे। विश्व हिन्दू महासम्मेलन और विराट हिन्दू संगम में 970 से ज्यादा हिन्दूवादी संगठनों और 10 हजार से ज्यादा साधुओं ने हिस्सा लिया। सम्मेलनों में युवा सांसद योगी आदित्यनाथ को हिन्दू हृदय सम्राट कहा जाने लगा। वह सड़क से संसद तक राममंदिर आंदोलन की प्रमुख आवाज बन गए। राममंदिर आंदोलन को उन्होंने गांव-गांव में पहुंचा दिया।

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