22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जहां भक्ति भाव का माहौल चरम पर है, वहीं इस पर राजनीति भी गरमाई हुई है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा है कि बीजेपी और आरएसएस इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पहले ही वहां राम मंदिर के लिए शिलान्यास करवा चुके हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस शिलान्यास के पीछे की सच्चाई क्या है? क्या सचमुच राजीव गांधी ने वहां शिलान्यास करवाया था और हां तो किसने किया था शिलान्यास?
1989 में केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। उस वक्त उनकी सरकार में मंत्री रहे वीपी सिंह ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। वह देश भर में बोफोर्स मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे थे और राजीव गांधी की सरकार को भ्रष्ट सरकार करार दे रहे थे। दूसरी तरफ विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चला रहा था।
उसी साल दिसंबर में लोकसभा के चुनाव होने वाले थे। ऐसे में राजीव गांधी ने तब विशाल हिन्दू मतदाताओं का वोट पाने के लिए या कहें कि बहुसंख्यक हिन्दू तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं को अपने साथ कर लिया था। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ इस मुद्दे का समाधान करने के लिए लगाया।
मीडिया रिपोर्ट्स में तब कहा गया था कि मुख्यमंत्री एनडी तिवारी, केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह और विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं की एक गुप्त बैठक हुई थी, जिसमें लिखित तौर पर समझौता हुआ था कि राजीव गांधी विवादित रामजन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर के लिए शिलान्यास की अनुमति देंगे और बदले में साधु-संत समाज चुनावों में सरकार का समर्थन करेंगे।
इस गुप्त सहमति के बाद 9 नवंबर, 1989 को अयोध्या में शिलान्यास कार्यक्रम संपन्न हुआ। हालांकि राजीव गांधी उस दिन उस कार्यक्रम से दूर रहे लेकिन उनकी नजर उस घटना पर लगातार बनी हुई थी। तब मंदिर के लिए आधारशिला एक दलित युवक कामेश्वर और स्वामी अवैद्यनाथ ने रखी थी, जो उस समय राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
बता दें कि इस घटना से तीन साल पहले ही राजीव गांधी ने 1986 में ही विवादित स्थल पर से ताला खुलवाया था। वैसे तो यह अदालती आदेश पर हुआ था लेकिन बड़ी बात यह है कि जज के आदेश के 40 मिनट के अंदर तब ताला खुलवा दिया गया था। इतना ही नहीं उन्होंने 1989 के चुनाव प्रचार का आगाज भी अयोध्या से किया था लेकिन इसे संयोग ही कहेंगे कि जिस विश्व हिन्दू परिषद का साथ पाने के लिए उन्होंने ये जतन किए थे, उस VHP ने चुनावों में राजीव गांधी और कांग्रेस का साथ नहीं दिया। साधु-संत तब इससे भी आगे बढ़कर मांग करने लगे थे- कसम राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे।
दिलचस्प बात यह भी है कि जब राजीव गांधी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करवा रहे थे, उस समय बीजेपी नहीं चाहती थी कि मंदिर का शिलान्यास हो, जबकि उसकी समर्थक रही विहिप चाहती थी कि शिलान्यास हो। बीजेपी ने तब वीपी सिंह को समर्थन दिया था। बहरहाल, 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार हुई और राजीव गांधी की जगह वीपी सिंह प्रधामंत्री बने। 1990 में फिर राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा और वहां कार सेवा की मांग हुई।