कर्ज के बोझ तले दबता भारत
भारत में अमीर लोगों का दबदबा है, हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत के 10 प्रतिशत अमीर लोगों के पास देश की आधे से अधिक की वित्तीय संपत्ति और भौतिक सुविधाए हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत के 10 प्रतिशत अमीर लोगों के पास देश की आधे से अधिक की वित्तीय संपत्ति और भौतिक सुविधाए हैं। ऑल इंडिया डेब्ट और इन्वेस्टमेंट सर्वे, 2019 से पता चलता है कि भारत के 10 प्रतिशत अमीरों का शहरी क्षेत्रों में कुल संपत्ति का 55.7 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 50.8 प्रतिशत का मालिकाना हक है। खबर के अनुसार संपत्ति का पता घरों के स्वामित्व वाली हर चीज कि कीमत डालकर की जाती है, इसके अंदर भौतिक संपत्ति जैसे भूमि, भवन, पशुधन और वाहन के साथ-साथ वित्तीय संपत्ति जैसे कंपनियों में शेयर, बैंक में जमा, और डाकघर आदि शामिल। इसका बहुत कुछ कारन मोदी सरकार की नीतिया भी है तभी उस पर यह आरोप भी लगते है की सरकार अपने मित्रों को ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटकर भारत की अर्थव्यवस्था को ‘ डिफॉल्टर काल ‘ में ले जा रही है।पूंजीपतियों को ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटना और आम लोगों की बचत को खत्म करना सरकार का एकमात्र एजेंडा रहा है।”मार्च 2019 के बाद से जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों का बकाया प्रति दिन ₹100 करोड़ तक बढ़ गया है? क्या यह सही नहीं है की सरकार ने पिछले 9 वित्तीय वर्षों में 14.56 लाख करोड़ रुपये के एनपीए को माफ नहीं किया है?”केंद्र की सरकार पर लगातार या आरोप लगते रहे है ,की सरकार नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या जैसे गंभीर आर्थिक अपराधियों की मदद करने की दोषी है ।जतिन मेहता – लूटो और भारत से भाग जाओ, कमरतोड़ महंगाई थोप रहे हो,आप आम लोगों की बचत को डुबा रहे हो, जबकि बड़ी आर्थिक विषमता पैदा कर रहे हो ।शायद यही कारण है की देश का प्रमुख पार्टी कांग्रेस अर्थव्यवस्था को संभालने के सरकार के तरीके की आलोचना करती रही है और समय-समय पर बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और एनपीए के मुद्दे पर आलोचना करती रही है।देश में आर्थिक विषमता बढ़ती जा रही है, जिसके कारण गरीब और गरीब.. अमीर और अमीर हो रहा है। आज आम जनता को न्याय नहीं मिल रहा है।यह आज की सच्चाई है की परिवारों की वित्तीय बचत 47 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर चली गई है।यह बात भारत की घरेलू बचत से जुड़ी गंभीर चिंताओं को सामने लाता है। ‘‘अर्थशास्त्रियों ने कई मुद्दे उठाए हैं। बढ़ती महंगाई और कमाई में वृद्धि न होने के कारण परिवारों के पास बचत के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। बचत दर कई दशकों में सबसे निचले स्तर पर है।”गौर करने वाली बात यह है की ‘‘कम बचत का मतलब है व्यापार और सरकारी निवेश के लिए कम पूंजी उपलब्ध होना। इस स्थिति में भारत को पैसे के लिए अस्थिर विदेशी पूंजी पर निर्भर रहना होगा। सभी निजी कर्ज में से होम लोन का हिस्सा पांच वर्षों में पहली बार 50 प्रतिशत से नीचे है। यह गंभीर चिंता का विषय है। यह दर्शाता है कि संकट घरेलू देनदारियों में वृद्धि से प्रेरित है।कांग्रेस के इस दावे मे भी दम है की नरेंद्र मोदी जी ने वो कीर्तिमान स्थापित किया है, जो इस देश के 14 प्रधानमंत्री उनसे पहले नहीं कर पाए हैं.””इस देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर मात्र 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया. 67 साल में 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया और हर बार रेस में आगे रहने की चाहत वाले नरेंद्र मोदी जी ने पिछले नौ सालों में हिन्दुस्तान का क़र्ज़ा तिगुना कर दिया. 205 लाख करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज़ा उन्होंने मात्र 10 साल में ले लिया.”कोंग्रेश का दावा है कि 2014 तक भारत पर 55 लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ था जो अभी 155 लाख करोड़ तक जा पहुँचा है.।