राजस्थान में विधासभा चुनाव की तैयारियों के बीच एक पत्र ने कांग्रेस के बीच खलबली मचा दी है। जमवारामगढ़ से विधायक और पार्टी उम्मीदवार गोपाल लाल मीणा ने राजस्थान कांग्रेस चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को यह चिट्ठी लिखी है।
इसमें उन्होंने अपील की है कि सचिन पायलट को उनके निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए भेजा जाए। इसमें आपको कुछ भी असामान्य नहीं लग सकता है, मगर राजनीतिक जानकार इसके पीछे छिपे बड़े संदेश की ओर से इशारा कर रहे हैं। राजस्थान कांग्रेस के भीतर से ही पायलट को चुनावी कैंपेन के दौरान अधिक सक्रिय किए जाने की मांग उठी है। इसके बावजूद कि राज्य में इस बार भी यह इलेक्शन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर केंद्रित दिख रहा है।
ग्रैंड ओल्ड पार्टी के कुछ नेताओं की ओर से पायलट को अपने विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए बुलाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसका कारण तलाश करने के लिए बहुत मेहनत करने की जरूरत नहीं है। दरअसल, राजस्थान में इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान एक नारा बड़ा मशहूर हो रहा है। जो है- ‘गहलोत तुमसे बैर नहीं, विधायक तुम्हारी खैर नहीं।’ दूसरी ओर, गहलोत आक्रामक चुनावी अभियान करते दिख रहे हैं। गृह लक्ष्मी जैसी कई कांग्रेसी योजनाओं पर उनका फोकस है। इन सबके बीच कुछ ऐसी परिस्थितियां भी बन रही हैं जो गहलोत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। इनमें कुछ मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ जनता का गुस्सा और सत्ता विरोधी लहर को लेकर सबसे अधिक बात हो रही है।
गहलोत और पायलट के एक साथ रोड शो की मांग
न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, गोपाल मीणा जिस सोच को आगे ला रहे हैं, वो यह है कि अगर पायलट को प्रचार में आगे करते हैं तो कुछ क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही मांग यह भी उठाई जा रही है कि गहलोत और पायलट को एक साथ प्रचार या रोड शो में लाया जाए। इससे बिगड़ते दिख रहे चुनावी समीकरणों को साधने में मदद मिल सकती है। खास तौर से ऐसे विधानसभा क्षेत्रों में जहां 18-39 आयु वर्ग के करीब 66 प्रतिशत युवा मतदाता हैं, वहां सचिन पायलट को आगे किया जाना चाहिए। चुनावी रणनीतिकार भी इससे सहमत नजर आते हैं कि यह प्लान कांग्रेस के लिए काम कर सकता है। अशोक गहलोत का एक मजबूत पक्ष यह भी बताया जाता है कि उनके अभियान से महिला मतदाता प्रभावित होती हैं।
कर्नाटक जैसा हाल, क्या निकलेगा हल?
इस तरह, अगर गहलोत और पायलट एक साथ चुनावी कैंपेन के लिए आगे आते हैं तो पार्टी को इसका लाभ मिल सकता है। राज्य में कांग्रेस की सत्ता को कड़ी चुनौती दे रही भाजपा के उन आरोपों का भी करारा जवाब मिलेगा कि कांग्रेस तो गहलोत-पायलट की प्रतिद्वंद्विता में ही उलछी हुई है। अब तक इन दोनों ने इस बार एक बार ही मंच साझा किया है। वह भी तब जब गांधी परिवार आया हुआ था- जैसे कि प्रियंका वाड्रा का दौसा दौरा। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के भीतर कुछ इसी तरह की स्थिति बनी थी। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने यह सुनिश्चित किया कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार अक्सर साथ देखे जाएं। चुनावी कैंपेन के दौरान ऐसा हुआ भी और जिसका उसे पूरा लाभ मिला। यहां यह सवाल तो जरूर उठ रहा है कि क्या गहलोत और पायलट इसके लिए तैयार होंगे? या फिर, दोनों नेताओं के समर्थक एक-दूसरे को आगे लाने पर ही जोर देते रहेंगे?