क्या है जागेश्वर धाम का इतिहास, जिसे PM Modi की यात्रा के बाद मिली 5वें धाम के रूप में मान्यता

ब तक हिंदू धर्म की सबसे पवित्र यात्रा को 4 धाम यात्रा कहा जाता था, जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा शामिल थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफर के बाद उत्तराखंड के जागेश्वर धाम को अब 5वें धाम के रूप में मान्यता मिल गयी है।

उम्मीद की जा रही है कि अब जागेश्वर धाम में टूरिज्म का विकास होने के साथ ही यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बढ़ेगी। पर क्यों इतना खास है जागेश्वर धाम और क्या है जागेश्वर धाम का इतिहास?

कहां है जागेश्वर धाम

जागेश्वर धाम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में पिथौरागढ़ से 36 किमी की दूरी पर मौजूद है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जागेश्वर धाम ही वह पहला स्थान है जहां भगवान शिव की पूजा लिंग स्वरूप में की गयी थी। कहा जाता है कि कोई व्यक्ति अगर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग या शिव की नगरी काशी, हरिद्वार नहीं भी जा सके तो जागेश्वर धाम में भगवान शिव के दर्शन जरूर करना चाहिए।

कहा जाता है कि सुर, नर, मुनि की सेवा से प्रसन्न होकर भगवान शिव इसी स्थान पर जागृत हुए थे। इसलिए इस जगह का नाम जागेश्वर धाम पड़ा। मान्यता है कि इस स्थान पर महादेव माता पार्वती समेत देवदार के घने वनों में वृक्ष के रूप में विराजमान हैं।

मौजूद हैं 250 से अधिक मंदिर

जागेश्वर में एक ही स्थान पर 250 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर स्थित हैं। इनमें से जागेश्वर धाम में 124 मंदिरों का समूह है। बताया जाता है कि इनमें 108 मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। जागेश्वर धाम मंदिर समूह में सबसे विशाल मंदिर महादेव के महामृत्युंजय स्वरूप का है। इसके अलावा यहां 16 अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं, जिनमें जागनाथ, पुष्टि देवी, कुबेर, माता पार्वती, भैरव, केदारनाथ, हनुमान, मां दुर्गा आदि मंदिर प्रमुख है। कहा जाता है कि स्कंद पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि में जागेश्वर धाम की महिमा का बखान किया गया है।

नहीं पूरी होती ये मनोकामनाएं

कहा जाता है कि प्राचीन काल में जागेश्वर मंदिर में मांगी गयी हर मन्नत स्वीकार होती थी, जिसका बहुत दुरुपयोग होने लगा था। 8वीं सदी में जब आदि शंकराचार्य यहां आए तो उन्होंने इसका दुरुपयोग रोकने की व्यवस्था की। कहा जाता है कि अगर यहां कोई व्यक्ति कुछ बुरी मनोकामना करता है तो वह कभी पूरी नहीं होती है। इस मंदिर में यज्ञ और अनुष्ठान करके मांगी गयी केवल अच्छी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्रों लव-कुश ने अपने पिता की सेना से अज्ञानतावश युद्ध किया था। इस युद्ध के प्रायश्चित के लिए उन्होंने इस जगह पर यज्ञ आयोजित किया था। कहा जाता है कि यहां सबसे पहला मंदिर लव और कुश ने ही स्थापित किया था। इसके अलावा पांडवों के भी यहां आश्रय लेने के कई साक्ष्य मिले हैं। हालांकि उनके द्वारा मंदिर के निर्माण के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।

कब हुआ था मंदिर का निर्माण

जागेश्वर धाम मंदिर का निर्माण कब हुआ था, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। मंदिर की दिवारों पर मिले शिलालेखों से भी मंदिर निर्माण का समय स्पष्ट नहीं होता है। कोई इसे 1,000 तो कोई 2,000 साल पुराना बताता है। हालांकि पुरातत्वविदों के मुताबिक इन मंदिरों का निर्माण 7वीं से 14वीं सदी के बीच हुआ था। इन मंदिरों का जीर्णोद्धार राजा शालिवाहन के शासनकाल में कराया गया था।

प्राचीन काल में कुमाऊं कौशल राज्य का हिस्सा माना जाता था। कहा जाता है कि बौद्ध काल में भगवान बद्री नारायण की मूर्ति गौरी कुंड में और जागेश्वर धाम के देवी-देवताओं की मूर्तियां ब्रह्मकुंड में काफी दिनों तक पड़ी हुई थी। जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इन मूर्तियों की पुनर्स्थापना की थी।

क्या है जागेश्वर धाम की कहानी

पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पति के अपमान से दुःखी होकर देवी सती ने अपना देह त्याग दिया। भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर को टूकड़ों में काटकर शक्तिपीठ की स्थापना की। इसके बाद भगवान शिव यज्ञ का भस्म अपने शरीर पर लपेट कर दारुक वन के घने जंगलों में लंबे समय तक तपस्या करते थे। उस समय वहां सप्तऋषि अपनी पत्नियों के साथ रहा करते थे। इस स्थान को भगवान शिव की तपस्यास्थली के रूप में भी जाना जाता है। एक बार जब ऋषि पत्नियां जंगल में फल व कंद-मूल एकत्र करने गयी तो तपस्यारत भगवान शिव को देखकर वह उनपर मोहित हो गयी।

भगवान शिव तो तपस्या में लीन थे और उन्होंने ऋषि पत्नियों की तरफ ध्यान नहीं दिया लेकिन उनके तेज स्वरूप की वजह से ऋषियों की पत्नियां मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ी। काफी देर तक पत्नियों के वापस नहीं लौटने पर जब सप्तऋषि उन्हें ढूंढते हुए वहां पहुंचे तो मुर्छित पड़ी अपनी पत्नियों को देखकर उन्होंने भगवान शिव को गलत समझ लिया और उन्हें श्राप दे दिया। तब तपस्या से जागकर भगवान शिव ने सप्तऋषियों से आकाश में तारों के बीच रहने का आदेश दिया। ऋषियों के श्राप की वजह से ही इस स्थान पर भगवान शिव का लिंग स्वरूप सर्वप्रथम स्थापित हुआ।

मंदिरों का होगा सुन्दरीकरण

12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जागेश्वर धाम यात्रा के बाद इसे 5वें धाम के रूप में मान्यता मिल गयी है। अब इस धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान बनाया जाएगा जिसके तहत केदारनाथ और बद्रीनाथ की तरह जागेश्वर धाम का भी विकास होगा। यह कार्य मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत होगा, जिसका शिलान्यास पीएम मोदी ने कर दिया है। बताया जाता है कि मास्टर प्लान लागू होने के बाद न सिर्फ मंदिर का सौन्दर्यीकरण होगा बल्कि बुनियादी सुविधाओं का भी विस्तार होगा।

सड़कों को चौड़ा किया जाएगा, शौचालय, एटीएम, पार्किंग, होमस्टे, होटल आदि भी बनेंगे ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को कोई असुविधा ना हो। बता दें, रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल यानी 2022 में जागेश्वर धाम में करीब 1,47,195 देसी और 16,065 विदेशी पर्यटक आए थे।

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