नीतीश सरकार द्वारा बिहार में सामाजिक और आर्थिक सर्वे के आंकड़े पेश किए जाने के बाद आरक्षण लिमिट बढ़ाने की कवायद जारी है। बिहार की जनता को लगता है कि बीपी मंडल का सपना अब साकार होने वाला है।खासकर सीमांचल और कोसी में रहने वाले यादव समाज के लोगों को सरकार से ज्यादा उम्मीदें हैं। जातिगत एवं आर्थिक गणना के आंकड़ों ने एक बार फिर उन लोगों को आवाज दी है जो अपनी स्थिति के आधार पर अपना हक मांगने लगे हैं।
मधेपुरा को यादवों का गढ़ माना जाता है। जिले के साहुगढ़ के रहने वाले 50 वर्षीय लालू यादव ने सरकारी क्षेत्र में अपने समुदाय की नौकरी का प्रतिशत महज 1.55% होने पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि बीपी मंडल ने जो लड़ाई शुरू की थी वह अब जाति गणना रिपोर्ट के बाद सच होती दिख रही है। साहुगढ़ के पूर्व मुखिया नित्यानंद यादव ने भी सरकार की सर्वे रिपोर्ट पर खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि हम काफी दयनीय जीवन जी रहे हैं और इसका एहसास पहली बार बीपी मंडल को हुआ और अब उनका सपना सच होता दिख रहा है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इस रिपोर्ट पर आगे कार्यवाही करने में टालमटोल न किया जाए।
पूर्णिया पूर्वी ब्लॉक के श्रीनगर निवासी 45 वर्षीय अरुण कुमार यादव ने कहा कि यह तथ्य हमेशा से है। इसके बावजूद सरकारों ने हमारी उपेक्षा की है कि हम एक दयनीय जीवन जी रहे हैं। अरुण पेशे से दूधवाले हैं और और वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी यही काम करें। उन्होंने कहा कि अब हम चाहते हैं कि सरकार हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए।
इसी तरह, पूर्णिया के डगरुआ ब्लॉक के बभनी गांव के निवासी 65 वर्षीय चमरू यादव अपने पोते को लेकर आशान्वित हैं। उनका पोता बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तलाश में है। उन्होंने कहा कि मेरा पोता अब भी बेरोजगार है और अब उम्मीद है कि यह सर्वे सरकार को हमारे बारे में कुछ सोचने के लिए प्रेरित करेगा।
बता दें कि बिहार की आबादी में करीब 14 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले यादवों की गरीबी दर 35.80 फीसदी है और सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी महज 1.55 फीसदी है। ईबीसी (अत्यंत पिछड़ी जातियां) जो आबादी का 36.01% है, उसमें गरीबी दर 33.58% है। ईबीसी जातियों की की सरकारी नौकरियों में भागीदारी भी कम है। सबसे ज्यादा चंद्रवंशी 1.45 फीसदी सरकारी नौकरी में हैं और उसके बाद तेली 1.44% हैं।