जाने-अनजाने पापों से मुक्ति के लिए कल नर्मदा जयंती पर जरूर करें ये काम

 हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों की कमी नहीं है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन नर्मदा जयंती को बेहद ही खास माना गया है इस दिन स्नान दान व पूजा पाठ का विशेष विधान होता है।

मान्यता है कि नर्मदा जयंती पर पवित्र नदी नर्मदा में स्नान करने से जातक के बड़े से बड़े पाप धुल जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है।

पंचांग के अनुसार नर्मदा जयंती हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 16 फरवरी को मनाया जा रहा है इस दिन स्नान दान व पूजा पाठ के साथ ही अगर मां नर्मदा की संपूर्ण चालीसा का पाठ किया जाए तो जाने अनजाने किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है और देवी की असीम कृपा बरसती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं नर्मदा चालीसा पाठ।

मां नर्मदा की चालीसा-

॥ दोहा॥

देवि पूजित, नर्मदा,

महिमा बड़ी अपार ।

चालीसा वर्णन करत,

कवि अरु भक्त उदार॥

इनकी सेवा से सदा,

मिटते पाप महान ।

तट पर कर जप दान नर,

पाते हैं नित ज्ञान ॥

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी,

तुम्हरी महिमा सब जग जानी ।

अमरकण्ठ से निकली माता,

सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।

कन्या रूप सकल गुण खानी,

जब प्रकटीं नर्मदा भवानी ।

सप्तमी सुर्य मकर रविवारा,

अश्वनि माघ मास अवतारा ॥

वाहन मकर आपको साजैं,

कमल पुष्प पर आप विराजैं ।

ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,

तब ही मनवांछित फल पावैं ।

दर्शन करत पाप कटि जाते,

कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।

जो नर तुमको नित ही ध्यावै,

वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥

मगरमच्छा तुम में सुख पावैं,

अंतिम समय परमपद पावैं ।

मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,

पांव पैंजनी नित ही राजैं ।

कल-कल ध्वनि करती हो माता,

पाप ताप हरती हो माता ।

पूरब से पश्चिम की ओरा,

बहतीं माता नाचत मोरा ॥

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,

सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं ।

शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं,

सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,

ये सब कहलाते दु:ख हारे ।

मनोकमना पूरण करती,

सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥

कनखल में गंगा की महिमा,

कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।

पर नर्मदा ग्राम जंगल में,

नित रहती माता मंगल में ।

एक बार कर के स्नाना,

तरत पिढ़ी है नर नारा ।

मेकल कन्या तुम ही रेवा,

तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥

जटा शंकरी नाम तुम्हारा,

तुमने कोटि जनों को है तारा ।

समोद्भवा नर्मदा तुम हो,

पाप मोचनी रेवा तुम हो ।

तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई,

करत न बनती मातु बड़ाई ।

जल प्रताप तुममें अति माता,

जो रमणीय तथा सुख दाता ॥

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,

महिमा अति अपार है तुम्हारी ।

तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,

छुवत पाषाण होत वर वारि ।

यमुना मे जो मनुज नहाता,

सात दिनों में वह फल पाता ।

सरस्वती तीन दीनों में देती,

गंगा तुरत बाद हीं देती ॥

पर रेवा का दर्शन करके

मानव फल पाता मन भर के ।

तुम्हरी महिमा है अति भारी,

जिसको गाते हैं नर-नारी ।

जो नर तुम में नित्य नहाता,

रुद्र लोक मे पूजा जाता ।

जड़ी बूटियां तट पर राजें,

मोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥

वायु सुगंधित चलती तीरा,

जो हरती नर तन की पीरा ।

घाट-घाट की महिमा भारी,

कवि भी गा नहिं सकते सारी ।

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,

और सहारा नहीं मम दूजा ।

हो प्रसन्न ऊपर मम माता,

तुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥

जो मानव यह नित है पढ़ता,

उसका मान सदा ही बढ़ता ।

जो शत बार इसे है गाता,

वह विद्या धन दौलत पाता ।

अगणित बार पढ़ै जो कोई,

पूरण मनोकामना होई ।

सबके उर में बसत नर्मदा,

यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥

॥ दोहा ॥

भक्ति भाव उर आनि के,

जो करता है जाप ।

माता जी की कृपा से,

दूर होत संताप॥

॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥

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