बीते गुरुवार को उत्तराखंड के हल्द्वानी में हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई थी। हिंसा तब शुरू हुई जब अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थल पर प्रशासन का बुलडोजर कार्रवाई करने पहुंचा था।इस दौरान छतों से शुरू हुई पत्थरबाजी ने विकराल रूप ले लिया। हिंसा में गोलीबारी भी हुई। प्रशासन ने इस मामले के मास्टर माइंड अब्दुल मलिक को गिरफ्तार कर लिया है। मामले की जांच की जा रही है। इस पूरी हिंसा की वजह बनी नजूल जमीन। तो आइये जानते हैं कि आखिर ये नजूल भूमि क्या होती है?
क्या होती है नजूल भूमि
नजूल जमीन की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई थी। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने इन जमीनों को बागियों से जबरदस्ती कब्जा कर लिया था। साल 1947 में मिली आजादी के बाद भारत सरकार ने जबरदस्ती कब्जाई हुई जमीनों को उनके मालिकों को लौटाने का फैसला किया। इस दौरान कई जमीनों के असली मालिक मिले ही नहीं। इस दौरान सरकार के सामने कई ऐसे लोग आए जिनके पास जमीन के को अपना साबित करने के लिए पूरे कागज नहीं थे। जमीन का मालिक ना मिलने पर सरकार ने जमीन का मालिकाना हक अपने पास ही रखा।
नजूल जमीन जिस राज्य में स्थित होती है, उस राज्य सरकार का मालिकाना हक नजूल जमीन पर होता है। हालांकि, सरकारें इन जमीनों को खाली नहीं छोड़ना चाहती हैं तो एक तय सीमा के लिए इन जमीनों को लीज पर दे दिया जाता है। लीज की अवधि 15 साल से लेकर 99 साल तक दी जाती है। लीज खत्म होने से पहले राजस्व विभाग में बात करके लीज को रीन्यू भी करवाया जा सकता है।
किस काम में आती है नजूल जमीन
नजूल जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास होता है। नजूल जमीन के रखरखाव और उसका उपयोग किस तरह करना है यह प्रशासन द्वारा तय होता है। ज्यादातर प्रशासन इस जमीन का इस्तेमाल सरकारी स्कूल, अस्पताल या पंचायत भवन बनाने में करता है। कई बार इलाकों में हाउसिंग सोसायटीज भी नजूल की जमीन पर बनाई जाती है, जिसे लीज पर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में लैंड्स ट्रांसफर रूल, 1956 काम करता है।