प्राण प्रतिष्ठा की धूम के बीच कानपुर की एक रामायण चर्चा में है। यह 164 साल पहले उर्दू में लिखी गई थी। इसमें राम की जीवन लीलाओं के खूबसूरत चित्र भी उकेरे गए थे। यह उर्दू रामायण 1859 में मुंशी कालिका प्रसाद कायस्थ ने लिखी और छपाई।इसमें चित्रों से रामलीला कही गई है। कानपुर हिस्ट्री सोसायटी के महामंत्री अनूप शुक्ला बताते हैं कि चित्र रामायण, जो अवध नरेश श्री राम का चरित्र है, उसमें उनके जीवन के घटनाक्रमों के चित्र हैं। इतिहासविद् के अनुसार मुंशी कालिका प्रसाद कायस्थ तब अवध दरबार में थे। नवाब वाजिद अली शाह रामलीला कराते थे। संभवत: उन्हीं दृश्यों के आधार पर रेखांकन मुंशी जी ने रामायण तैयार की। शुरुआती पन्नों में गोस्वामी तुलसीदास को रामकथा सुनाते दिखाया गया है। रामलीला देखते अवध के नवाब वाजिद अली शाह का दरबारियों के साथ चित्र भी इसमें मौजूद है।
रामायण के हर दृश्य का चित्रांकन
चित्र रामायण में दृश्यों के साथ कहीं उर्दू कहीं फारसी में दृश्य की जानकारी दी गई है। सीता स्वयंवर का दृश्य भी खास है। एक दृश्य में मां जानकी लक्षमण रेखा के अंदर भिक्षा लिए खड़ी दिख रही हैं तो एक ओर भगवान राम स्वर्णमृग का शिकार करते नजर आ रहे हैं। रावण के साथ अनेक प्रसंगों के चित्र भी इसमें शामिल हैं। अनूप शुक्ला बताते हैं कि वाजिद अली शाह के बाद इस चित्र रामायण का प्रकाशन कराया गया। इससे यह भी पता चलता है कि वाजिद अली शाह श्री रामलीला देखते थे। इसका मंचन उनके दरबार में होता था। वह श्री रामकथा सुनते भी थे।