ज्ञानवापी पर वाराणसी जिला कोर्ट से भी मुस्लिम पक्ष को झटका

ज्ञानवापी पर मुस्लिम पक्ष को जिला जज की अदालत से भी झटका लगा है। बगैर शुल्क जमा किए ज्ञानवापी का हो रहा एएसआई सर्वे को रोकने की मांग मुस्लिम पक्ष ने की थी। इसे लेकर दाखिल अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अर्जी को खारिज करने का आदेश सुनाया। कोर्ट ने कहा कि ये मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक निपटाया जा चुका है।मुस्लिम पक्ष एएसआई सर्वे के लिए शुल्क जमा कराने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। एएसआई कोई निजी संस्था नहीं बल्कि सरकारी संस्था है, इसलिए जनरल रूल सिविल लागू नहीं किया जा सकता है। इससे पहले बुधवार को ही केस स्थानांतरण को लेकर हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अर्जी को खारिज किया था।

ज्ञानवापी के मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतेजामिया की ओर से जुलाई में कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर पूछा गया था कि एएसआई सर्वे के लिए वादी की ओर से कितना शुल्क जमा किया गया है। अदालत की ओर से स्पष्ट कर दिया गया था कि इस सम्बंध में कोई शुल्क जमा नहीं कराया गया है। इसके बाद अंजुमन ने आदेश 26 नियम 15 के तहत कोर्ट में प्रार्थनापत्र देकर एएसआई सर्वे रोकने की मांग की थी। अंजुमन की ओर से अधिवक्ता मुमताज अहमद व रईस की ओर से कहा गया कि अधिनियम के तहत बिना शुल्क जमा कराये कोई भी सर्वे या अन्य कार्य नहीं कराया जा सकता है।

अधिवक्ताओं का यह भी आरोप था कि एएसआई की ओर से शुल्क जमा करने के लिए कोई प्रार्थनापत्र भी कोर्ट में नहीं दिया गया है। एएसआई भी जानबूझ कर नियम के विपरीत सर्वे कर रहा है। इसलिए इसे तत्काल रोकते हुए पूरी कार्यवाही अवैध ठहराई जाए। उधर, हिन्दू पक्ष की राखी सिंह की ओर से अधिवक्ता अनुपम द्विवेदी ने आपत्ति की। कहा कि अदालत ने विवादित मामलों को सुलझाने के लिए विशेषज्ञ के तौर पर एएसआई से राय जाननी चाही है।

एएसआई एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने वाली संस्था है। इसलिए वैज्ञानिक सर्वेक्षण या किसी राय के लिए कोर्ट में शुल्क जमा करना जरूरी नहीं। वादी संख्या दो से पांच के अधिवक्तागण सुधीर त्रिपाठी व सुभाषनंदन चतुर्वेदी ने भी इसका समर्थन किया। करीब 25 मिनट जिरह सुनने के बाद अदालत ने 22 सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था।

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