संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है गोवत्स द्वादशी का व्रत, जानें इसका महत्व

गोवत्स द्वादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स (गाय का बछड़ा) के रूप में मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है।

नंदिनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय है। इस दिन गाय के बछड़े की पूजा करने का विधान है। पूजा करने के बाद उन्हें गेहूं से बना भोजन खाने को देना चाहिए। इस दिन गाय के दूध और गेहूं से बने उत्पादों का प्रयोग वर्जित है। कटे हुए फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। गोवत्स की कथा सुनकर ब्राह्मणों को फल देना चाहिए। आइए जानते हैं गोवत्स द्वादशी की तिथि और इसका महत्व।

गोवत्स द्वादशी तिथि व्रत
द्वादशी तिथि आरंभ: 09 नवंबर 2023 प्रातः 10:40 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 बजे

गोवत्स द्वादशी का महत्व
मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ करने से भगवान कृष्ण बेहद प्रसन्न होते हैं और संतान की हर संकट से रक्षा करते हैं। यही नहीं निसंतान को संतान सुख का भी आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि गाय में 84 लाख देवी-देवताओं का वास होता है और जो लोग गोवत्स द्वादशी पर गायों की पूजा करते हैं उन्हें सभी 84 लाख देवी-देवताओं का आशीष मिलता है।

गाय के साथ इसीलिए की जाती है बछड़े की पूजा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन गौ माता का दर्शन कर उनका पूजन किया था। तभी से द्वादशी के दिन गाय और बछड़े दोनों की पूजा करने की परंपरा शुरू है। ऐसे में, इस दिन व्रत रख गाय-बछड़े की पूजा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन गाय-बछड़े की पूजा करते हैं उन्हें गौ के शरीर के रोंयों के बराबर सालों तक गौलोक में वास करने का सौभाग्य मिलता है। इसके अलावा श्रीकृष्ण की कृपा से निसंतान को संतान सुख और तरक्की का आशीर्वाद मिलता है।

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