कांग्रेस के लिए जरुरी या मजबूरी

जिस तरह कांग्रेंस क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर रही है, उससे आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े दल के तौर पर उभर कर आने पर ब्रेक लग सकता है। ऐसी हालत में केंद्र में यदि गैरभाजपा गठबंधन बहुमत में आता भी है तो कांग्रेस के लिए कप्तान की भूमिका निभा पाना मुश्किल होगा।हालांकि विगत विधानसभा चुनाव को यदि लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी मानें तो विपक्षी दलों की केंद्र में सरकार बनाने के संभावना क्षीण है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दिल्ली के अलावा हरियाणा, गुजरात, गोवा और चंडीगढ़ में भी गठबंधन हुआ है।कभी देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से लोकसभा चुनाव की सीटों को लेकर घाटे का सौदा करने को मजबूर हो गई है। कांग्रेस की यह हालत पिछले लोकसभा चुनाव में और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद हुई है। कमजोर होती कांग्रेस से रिक्त हुआ राजनीतिक स्थान क्षेत्रीय दल ले रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति यह हो गई है कि यदि राजनीति में टिकना है तो क्षेत्रीय दलों के सामने झुकना है। कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करके करीब 70 सीटों की कुर्बानी दे चुकी है। इन सीटों पर पिछली बार कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से कांग्रेस मात्र 52 सीटें जीतने में कामयाब हो सकी।हर दल जितना हो सके कांग्रेस की बांह मरोड़ने में जुटा हुआ है। समाजवादी पार्टी के तीखे तेवर दिखाने के बाद कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा घाटा हुआ है। कांग्रेस अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से डील कर चुकी है। पार्टी उत्तर प्रदेश में 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच आठ सीटों पर अभी तक फैसला नहीं हो सका है, जिसके बीच गतिरोध बना हुआ है। पश्चिम बंगाल भी कांग्रेस के लिए चुनौती बना हुआ है। तृणमूल सभी 42 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुकी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि कांग्रेस को अपने प्रभाव क्षेत्र वाले राज्यों से चुनाव लडऩा चाहिए। क्षेत्रीय दलों वाले राज्यों में कांग्रेस के लिए कोई स्थान नहीं है। ममता के इन तेवरों से जाहिर है कि अलबत्ता तो पश्चिमी बंगाल में तृणमूल से कोई सीट शेयरिंग नहीं होगी। यदि होती भी है तो कांग्रेस दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर सकेगी। तृणमूल कांग्रेस को दो से अधिक सीटें देने के लिए तैयार नहीं है, जो पूर्वी राज्य में कम से कम पांच सीटें मांग रही है। कांग्रेस के पास बिहार में सिर्फ लालू यादव की पार्टी आरजेडी से समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। यदि कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल से कांग्रेस समझौता करती है तो भाजपा दुगनी गति से कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर प्रहार करने का मौका मिल जाएगा। विगत चुनावों भाजपा से शिकस्त खाने के बाद कमजोर हुई कांग्रेस की हालत को बिखरते इंडिया गठबंधन ने तगड़े झटके दिए हैं। जिस तरह से कांग्रेस की हालत हो गई है, उस हिसाब से सीटों के समझौतों में गठबंधन कम मजबूरी अधिक झलक रही है।

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