मध्य प्रदेश में 5 साल पहले जीत हासिल करने वाली कांग्रेस ना तो सरकार कायम रख सकी और ना ही विजय का सिलसिला। दो दशक से मध्य प्रदेश की सत्ता से दूर कांग्रेस को कम से कम 5 साल और इंतजार करना होगा।रविवार को मतगणना के बाद नतीजे सामने आए तो 163 सीटों पर कमल खिल चुका था, जबकि कमलनाथ की अगुआई में कांग्रेस के हाथ महज 66 सीटें ही आईं। 2018 में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी।
हारकर भी किस बात का संतोष?
कांग्रेस को भले ही मध्य प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा और सीटों के मामले में उसे भारी नुकसान हुआ। लेकिन कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह है कि उसका ‘कोर वोट बैंक’ उसके साथ बना रहा है। 2018 से तुलना करें तो कांग्रेस के वोटशेयर में कोई खास गिरावट नहीं आई। 5 साल पहले पार्टी को 40.9 फीसदी वोट शेयर मिला था तो इस साल भी 40.4 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस को सत्ता में लाने की कोशिश की। इस लिहाज से कांग्रेस के समर्थन में महज ‘0.5’ फीसदी की ही गिरावट दर्ज की गई।
भाजपा के वोट शेयर में उछाल, यूं बदला खेल
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में अपने वोट शेयर में जबर्दस्त इजाफा किया है। भगवा दल को इस बार 48.4 मतदाताओं ने चुना, जबकि 5 साल पहले उसे 41.0 फीसदी वोट ही मिले थे। दिलचस्प यह भी है कि तब भाजपा को कांग्रेस से कुछ अधिक वोट ही मिला था। दरअसल, इस बार पूरा मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस पर ही केंद्रित रहा। निर्दलियों और अन्य दलों के खाते से करीब 7 पर्सेंट वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हो गया। 2018 में 18.1 फीसदी वोट अन्य के खाते में गए थे, जबकि इस बार 11.3 फीसदी लोगों ने ही भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर अन्य विकल्प के लिए वोट किया।