अति उत्साह ठीक नहीं

देश में लोकसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। आज परिस्थितियां सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पक्ष में बताई जा रही हैं। वर्तमान में द्रुत गति से हो रहा विकास, कुलांचे भरती अर्थव्यवस्था, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को लक्ष्य बना अग्रसर हो रहा भारत व विदेशी कूटनीतिक मोर्चों पर देश को मिलती सफलता या बात करें सांस्कृतिक उत्थान और साम्प्रदायिक सौहार्द की, तो थोड़ी बहुत नुक्ताचीनी के बाद कमोबेश हर विरोधी भी मान रहा है कि वर्तमान सरकार का कार्यकाल अच्छा रहा है। इन परिस्थितियों से ही तो उत्साहित हो कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार चार सौ पार का उत्साही नारा दिया है, सत्ताधारियों की दृष्टि से हर कहीं सब सही है, बस यहीं से शुरू हो सकता है अनुकूल परिस्थिति के खतरे पैदा होने का भ्रम । अतिउत्साही भाजपा को यह विस्मृत नहीं होना चाहिए कि साल 2004 में भी उसके पास नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की तरह अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी जैसे करिश्माई नेतृत्व की छत्रछाया थी। उस लोकसभा चुनावों में भारत उदय का आकर्षक नारा दिया गया था, अर्थव्यवस्था व विकास तब भी मृगझुण्डों के साथ चुंगियां भरने की स्पर्धा कर रहे थे परन्तु पार्टी की दृष्टि से परिणाम निराशाजनक रहे। छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गान्धी ने राजग को ऐसी पटकनी दी कि अगले दस साल तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही।वैसे भी मोदी-शाह की जुगलबन्दी और अटल-आडवाणी की जोड़ी की कार्यप्रणाली में गांधी जी व सरदार पटेल जैसी भिन्नता सर्वज्ञात है और विपक्ष की डांवाडोल हालत में 2004 दोहराया जाना फिलहाल सम्भव नहीं लगता परन्तु भाजपा को अपनी संघर्षमयी कार्यप्रणाली को बनाए रखना होगा।आज चाहे भाजपा को लक्ष्य सरल लग रहा है परन्तु मार्ग इतना भी आसान नहीं है कि लोकसभा में चार सौ सदस्यों को बिना संघर्ष किए शपथ दिलवाई जा सके। चाहे कांग्रेस कमजोर दिख रही है परन्तु तृणमूल कांग्रेस, सपा, डीएमके, एआईएडीएमके, बसपा, आम आदमी पार्टी, पीडीपी, नेशनल कान्फ्रेंस सहित अनेक क्षत्रप अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूती के साथ पांव जमाए हुए हैं। कहीं-कहीं इण्डिया गठजोड़ के प्लेटफार्म पर मिल कर ये सूबेदार भाजपा की कड़ी परीक्षा लेने वाले हैं। दूसरी ओर विकसित और आत्मनिर्भरता के मार्ग पर बढ़ रहा भारत बहुत-सी शक्तियों के आंखों की किरकिरी बना हुआ है।न सबके मद्देनजर भाजपा को कार्यपद्धति पर चलते हुए पूरी शक्ति के साथ चुनावों में उतरना होगा ।

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