लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दानिश अली-रमेश बिधूड़ी मुद्दे पर सांसदों की शिकायतों को विशेषाधिकार समिति को भेज दिया है। बता दें बसपा सांसद दानिश अली ने रमेश बिधूड़ी के खिलाफ को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा था और मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजने का आग्रह किया था।
दानिश अली के मुताबिक, बिधूड़ी ने उनके विशेषाधिकार का हनन किया है और लोकसभा में उनके खिलाफ ‘आतंकवादी’, ‘उग्रवादी’ और कई आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था।
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को लिखे अपने पत्र में उत्तर प्रदेश के अमरोहा से सांसद दानिश अली ने कहा, ”मैं आपसे आग्रह करता हूं कि नियम 227 के तहत इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए…मेरा आग्रह है कि इस मामले में जांच का आदेश दिया जाए।” दानिश अली का कहना है कि इस मामले में कार्रवाई जरूरी है ताकि देश का माहौल और दूषित न हो।
रमेश बिधूड़ी की टिप्पणियों को लेकर दानिश अली के अलावा अन्य सांसदों की तरफ से स्पीकर को लिखी गई चिट्ठी में यह शिकायत विशेषाधिकार समिति को भेजने की मांग की गई थी।
क्या होता है विशेषाधिकार हनन?
संसदीय विशेषाधिकार सांसदों को दिए गए हैं। भारतीय संसद के किसी भी सदन और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियां और विशेषाधिकार संविधान के अनुच्छेद 105 में निर्धारित हैं। हालांकि, यह तय करने के लिए कोई स्पष्ट अधिसूचित नियम नहीं हैं कि विशेषाधिकार का हनन क्या है और इसके लिए क्या सजा दी जाएगी। आम तौर पर सदन के दौरान कार्यवाही या सदन के किसी भी सदस्य पर उसके चरित्र या आचरण के संबंध में भाषण देना या मानहानि छापना या प्रकाशित करना सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन और अवमानना है।
कैसे मिलती है सजा?
यदि प्रत्यक्ष तौर पर विशेषाधिकार हनन और अवमानना का मामला पाया जाता है तो अध्यक्ष या सभापति उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए इसे विशेषाधिकार समिति को भेज देंगे। समिति इस बात की जांच करेगी कि क्या उनके द्वारा दिए गए बयानों से सदन और उसके सदस्यों का अपमान हुआ है और क्या जनता के सामने उनकी छवि खराब हुई है। समिति के पास अर्ध-न्यायिक शक्तियां हैं। समिति सभी संबंधित पक्षों से स्पष्टीकरण मांगेगी, जांच करेगी और निष्कर्षों के आधार पर सदन को विचार के लिए अपनी सिफारिश पेश करेगी।