माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भीष्म द्वादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भीष्म द्वादशी के दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के लिए भगवान कृष्ण की पूजा करती हैं। सनातन परंपरा में भीष्म द्वादशी के दिन की गई पूजा सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी जाती है। आइए जानते हैं भीष्म द्वादशी 2024 तिथि, पूजा का शुभ समय और इस दिन का महत्व।
भीष्म द्वादशी 2024 तिथि
इस साल भीष्म द्वादशी 20 फरवरी 2024 को है, उसी दिन जया एकादशी व्रत भी रखा जाएगा. माघ माह के शुक्लपक्ष की अष्टमी को भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे और इसके तीन दिन बाद द्वादशी के दिन भीष्म पितामह का तर्पण और पूजा करने की परंपरा है, इसलिए यह दिन बहुत खास माना जाता है।
माघ शुक्ल द्वादशी तिथि प्रारंभ- 20 फरवरी 2024, सुबह 09 बजकर 55 मिनट से
माघ शुक द्वादशी तिथि समाप्त – 21 फरवरी 2024, सुबह 11:27 बजे
भीष्म द्वादशी व्रत का महत्व
भीष्म द्वादशी व्रत सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इस दिन व्रत करने से सभी पापों का नाश हो जाता है। इस दिन श्रीहरि की पूजा करने से सौभाग्य, संतान सुख आदि में वृद्धि होती है। भीष्म द्वादशी के दिन पितरों को प्रसाद अर्पित करने से घर में समृद्धि आती है और पितृ दोष का दुष्प्रभाव खत्म होने लगता है।
भीष्म द्वादशी की पूजा कैसे करें?
भीष्म द्वादशी की पूजा का शुभ फल पाने के लिए साधक को सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद सूर्य नारायण को अर्घ्य देना चाहिए और उनका ध्यान करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लें. अब श्री हरि विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण को पीले फूल, पीले वस्त्र, पीले फल, पीला चंदन, पीली मिठाई, तुलसी के पत्ते आदि चढ़ाएं और श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके बाद तिल, जल और कुश के माध्यम से पितरों को तर्पण दें। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। महाभारत में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति भीष्म द्वादशी के दिन अपने पितरों को दान देता है वह हमेशा खुश रहता है।