मध्य प्रदेश में बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने पहली बार चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन किया है। मध्य प्रदेश में 230 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए दोनों के बीच सीटों के बंटवारे पर जो सहमति बनी है उसके अनुसार, बसपा 178 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी जबकि जीजीपी 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
चुनावी विशेषकों की मानें तो दोनों की नजर 37 फीसदी दलित और आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में करने की है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन 1991 में हुआ था। यह अलग गोंडवाना राज्य की मांग का समर्थन करती आई है। जीजीपी सूबे के आदिवासी समूह गोंडी लोगों के अधिकारों के लिए काम करती है।
दलित और आदिवासी वोटबैंक पर नजरें
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) की नजरें सूबे के दलित और आदिवासी मतदाताओं पर हैं। मध्य प्रदेश में लगभग 16 प्रतिशत दलित हैं। राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। राज्य की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 21 फीसदी से ज्यादा है। 47 विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
साल 2018 चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाते हैं कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से बीजेपी ने 18 पर जीत दर्ज की थी। वहीं कांग्रेस के खाते में 17 सीटें गई थीं। एसटी के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी थी जबकि कांग्रेस के खाते में 30 सीटें आई थीं।
इन इलाकों में बसपा का जनाधार
उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों जैसे बुंदेलखण्ड और ग्वालियर-चंबल बेल्ट में दलितों की आबादी ज्यादा है। माना जाता है कि इन इलाकों में बसपा का ठीक-ठाक जनाधार है। वहीं जीजीपी का पारंपरिक वोट आधार महाकौशल क्षेत्र को माना जाता है। खास तौर पर बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में जहां गोंडी समाज की आबादी ज्यादा जीजीपी कमाल कर सकती है।
37 फीसदी वोटबैंक पर सेंधमारी की तैयारी
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दलित और आदिवासियों के 37 प्रतिशत संयुक्त वोटों के लिए बसपा-जीजीपी गठबंधन आगामी चुनावों में तीसरे मोर्चे की जगह लेने की फिराक में है। बसपा-जीजीपी खेमे के सूत्रों की मानें तो दोनों ही दल दलितों और आदिवासियों के बीच भाजपा के वोट शेयर में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा और कांग्रेस के वोटबैंक पर पड़ेगा असर
बीएसपी-जीजीपी के चुनावी गठबंधन पर बसपा नेता रामजी गौतम कहते हैं कि मध्य प्रदेश में होने जा रही विधानसभा चुनावों में पहली बार होगा जब एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) समुदाय एक साथ आएंगे। अब तक एसटी समाज के लोग परंपरागत रूप से भाजपा और कांग्रेस को वोट देते आए हैं। ऐसे में बसपा और जीजीपी एक मजबूत विकल्प पेश करेंगे। हम एससी/एसटी समुदायों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलों को लेकर गांव गांव जाएंगे। हम शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बेरोजगारी का मुद्दा उठाएंगे। ये मुद्दे दो समुदायों के लोगों से जुड़े हैं।
निशाने पर भाजपा
भाजपा एससी और एसटी मतदाताओं के बीच अपनी गरीब समर्थक छवि पेश कर रही है। भाजपा विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं लागू करके एससी और एसटी समुदायों को लुभाने की कोशिश कर रही है। सूत्रों ने बताया कि बसपा-जीजीपी गठबंधन दलित और वंचित लोगों के चैंपियन पैरोकार होने के भाजपा के दावे को चुनौती देने का काम करेगा।
जीजीपी की चुनावी हिस्ट्री
यदि चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो पाते हैं कि जीजीपी ने 2003 के राज्य चुनावों में 61 उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से तीन निर्वाचित हुए थे। हालांकि इसके बाद वह विधानसभा चुनावों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही है। पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है। 2018 के चुनाव में उसने सपा के साथ गठबंधन किया था, जिसमें एसपी 1 सीट जीतने में कामयाब रही थी।
बसपा का कैसा रहा है प्रदर्शन
वहीं 1990 के दशक से मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ रही बसपा का प्रदर्शन बीते कुछ वर्षों से ठीक नहीं रहा है। साल 2008 के चुनावों में BSP ने 7 सीटें जीती थीं। 2013 के चुनावों में पार्टी की सीटें घटकर 4 सीटें रह गई थीं। यही नहीं साल 2018 के चुनावों में उसे केवल 2 सीटें हासिल हुई थीं।
हल्के में ले रहे कांग्रेस और भाजपा
वहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बसपा-जीजीपी गठबंधन को खारिज कर दिया है। दोनों दलों के नेताओं का कहना है कि यह गठबंधन राज्य के कुछ ही क्षेत्रों में उनके वोट बैंक में सेंध लगाएगा। बीजेपी प्रवक्ता हितेश बाजपेयी ने कहा कि मध्य प्रदेश में दो ही पार्टियां हैं। हम छोटी पार्टियों पर फोकस नहीं कर रहे हैं।
माहौल बनाने में जुटी जीजीपी
वहीं जीजीपी और बसपा ने सूबे में माहौल बनाना शुरू कर दिया है। हाल ही में जीजीपी उमरिया में पुलिस के साथ हिंसक झड़पों को लेकर सुर्खियों में थी। उमरिया में जीजीपी कार्यकर्ताओं ने विभिन्न परियोजनाओं में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। कथित तौर पर 40 से अधिक जीजीपी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। जीजीपी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम का कहना है कि हम हमेशा विभाजित थे। अब हम एक मंच पर एक साथ आये हैं। हम गठबंधन के लिए अन्य दलों से भी बात कर रहे हैं। इन पार्टियों के पास ओबीसी नेतृत्व है। उम्मीद है कि वे हमारी मदद करेंगे।