एक तीर से दो निशाने; यूपी में धमाकेदार परफॉर्मेंस कर कैसे राहुल-अखिलेश ने दिल्ली से लखनऊ तक दे दी बीजेपी को टेंशन

लोकसभा चुनाव के नतीजे सिर्फ बीजेपी ही नहीं, देशभर के लोगों के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। पिछले 10 सालों में दो बार आम चुनावों में आराम से बहुमत का आंकड़ा पार करने वाली भाजपा इस बार 272 सीटों से काफी पीछे रह गई।एनडीए को विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने यूपी-महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में डेंट लगाया है। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यूपी में लगा है, जहां पर समाजवादी पार्टी इतिहास का सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए प्रदेश में सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बन गई। यूपी में सपा को 37 सीटों पर जीत मिली है, जबकि बीजेपी महज 33 सीटों पर सिमट गई। इंडिया अलायंस में सपा की सहयोगी कांग्रेस भी यूपी में पुनर्जीवित हो गई है और रायबरेली-अमेठी समेत छह सीटों पर जीत हासिल कर ली है। यूपी में कांग्रेस सिर्फ 17 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही थी। धमाकेदार प्रदर्शन की वजह से सपा और कांग्रेस ने बीजेपी को दिल्ली से लेकर लखनऊ तक टेंशन दे दी है।पिछले 10 सालों में पहली बार गिरा बीजेपी का ग्राफ 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी का जिन राज्यों में तेजी से प्रभाव बढ़ा, उसमें सबसे ऊपर यूपी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी में शानदार प्रदर्शन करते हुए एकतरफा जीत दर्ज की थी। इसके अलावा, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ और फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अकेले दम पर लगातार दूसरी बार प्रदेश में भगवा दल ने वापसी की। 2017 में यूपी का सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में भी तेजी से इजाफा हुआ था। एनकाउंटर नीति, बुल्डोजर से माफियाओं के अवैध घरों को गिराना, सुरक्षा स्थिति को बेहतर करने की वजह से योगी सरकार का ग्राफ लगातार बढ़ता चला गया। इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव में भी दिखाई दिया और बीजेपी को फिर से जीत हासिल हुई। पिछले दस सालों में यूपी में दो लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन की वजह से इस लोकसभा चुनाव में भी माना जा रहा था कि यूपी का मुकाबला एकतरफा होगा। खुद बीजेपी ने ही लक्ष्य 80 में से 80 का रखा था, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो पार्टी सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गई और बीजेपी का ग्राफ भी पिछले दस साल में पहली बार यूपी में गिर गया।सिर्फ 24 नहीं, 27 के लिए भी बढ़ीं बीजेपी की मुश्किलें केंद्र में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने के पीछे एक बड़ी वजह यूपी में बड़ी संख्या में सीटों का कम होना है। 2019 में बीजेपी ने यूपी में सपा और बसपा जैसा गठबंधन होने के बाद भी 62 सीटों पर अकेले दम पर जीत दर्ज की थी। पांच साल बाद सिर्फ यूपी में ही बीजेपी की 29 सीटें कम हो गईं। सीटों के कम होने की वजह से बीजेपी के लिए सिर्फ दिल्ली में ही टेंशन नहीं खड़ी हो गई, बल्कि इसका असर यूपी में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पड़ने की संभावना है। दरअसल, 2022 विधानसभा चुनाव में ही समाजवादी पार्टी का प्रदेश में ग्राफ काफी बढ़ गया था। भले ही अखिलेश की पार्टी बहुमत से दूर रह गई हो, लेकिन 2017 के मुकाबले 64 सीटों का फायदा होते हुए सपा 111 सीटों पर पहुंच गई थी। अब सपा ने लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को पीछे कर दिया और 37 सीटों पर कब्जा जमा लिया। वहीं, 2027 यूपी विधानसभा चुनाव में योगी सरकार के दस साल पूरे होने की वजह से बीजेपी को एंटी इंकमबेंसी का भी सामना करना पड़ सकता है। बेरोजगारी, महंगाई और संविधान आदि के मुद्दों पर पहले से ही भाजपा घिरती रही है। अब जब आम चुनाव में सपा और कांग्रेस ने एनडीए गठबंधन के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत ली हैं तो 2027 में सपा और बीजेपी के बीच टक्कर का मुकाबला देखने को मिल सकता है।यूपी में किन वजहों से बीजेपी का हो गया ये हाल? दो दिन पहले तक शायद ही कोई राजनैतिक जानकार था, जो पुख्ता तौर पर यह बोल रहा था यूपी में बीजेपी को इतना बड़ा झटका लगेगा। 29 सीटों का घटना कोई मामूली बात नहीं है। संख्या के हिसाब से सीटों की बड़ी गिरावट के पीछे संविधान खत्म किए जाने का नैरेटिव इंडिया गठबंधन के लिए काम कर गया। अनंत हेगड़े, लल्लू सिंह समेत बीजेपी के कई नेताओं ने संविधान बदलने के लिए 400 सीटें देने की मांग की थी। इस मुद्दे को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लपकते हुए पूरे देश में यह नैरेटिव बना दिया कि बीजेपी एनडीए के लिए 400 सीटों की मांग इसीलिए कर रही है, ताकि वह संविधान बदल सके और आरक्षण को हटा दे। यूपी में भी राहुल और अखिलेश यादव ने अपने भाषणों को इसी के इर्द-गिर्द रखते हुए बीजेपी को जमकर घेरा। इससे बसपा और भाजपा को पूर्व जाने वाला दलित और पिछड़ों का वोट कांग्रेस और सपा गठबंधन की ओर मुड़ गया। वहीं, मुस्लिमों ने भी इंडिया अलायंस को जमकर वोट दिया। बरोजगारी, महंगाई, छुट्टा जानवरों की समस्या, पेपर लीक आदि ने भी बीजेपी की मुश्किलें खड़ी कर दीं। वहीं, स्थानीय स्तर पर सांसदों से नाराजगी भी बीजेपी को लोकसभा चुनाव में भारी पड़ गई।

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