आदित्य-एल1 मिशन पर लगे 6 मीटर मैग्नेटोमीटर बूम को 132 दिनों के बाद अब हेलो कक्षा में सफलतापूर्वक तैनात किया गया है. बूम में दो फ्लक्सगेट मैग्नेटोमीटर हैं जो अंतरिक्ष में अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापते हैं.आदित्य-एल1 लॉन्च के बाद से बूम 132 दिनों तक बंद था. बूम में दो अत्याधुनिक, उच्च सटीकता वाले फ्लक्सगेट मैग्नेटोमीटर सेंसर हैं, जो अंतरिक्ष में कम तीव्रता वाले अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापते हैं. सेंसर अंतरिक्ष यान से 3 और 6 मीटर की दूरी पर तैनात किए गए हैं. इन दूरियों पर उन्हें स्थापित करने से माप पर अंतरिक्ष यान से पैदा चुंबकीय क्षेत्र का असर कम हो जाता है.
इस काम के लिए दो मैग्नेटोमीटर बूम का उपयोग करने से इस प्रभाव का सटीक अनुमान लगाने में सहायता मिलती है. दोहरी सेंसर प्रणाली अंतरिक्ष यान के चुंबकीय प्रभाव को रद्द करने की सुविधा प्रदान करती है. बूम सेगमेंट कार्बन फाइबर पॉलिमर से बने होते हैं और सेंसर को पकड़ने और सिस्टम के तत्वों के लिए इंटरफेस के रूप में काम करते हैं. आर्टिकुलेटेड बूम मैकेनिज्म में स्प्रिंग-संचालित हिंज मैकेनिज्म के जरिये जुड़े हुए 5 खंड शामिल हैं, जो फोल्डिंग और तैनाती कार्यों की अनुमति देते हैं.
इससे पहले भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य-एल1 सफलतापूर्वक अपनी मंजिल तक पहुंच गई थी. आदित्य-एल1 को 2 सितंबर, 2023 को भारतीय रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-एक्सएल लॉन्च किया गया था. जो अपनी हेलो कक्षा यानी सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) पर पहुंच गया. यह वह बिंदु है, जहां दो बड़े पिंडों-सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बराबर होगा और इसलिए अंतरिक्ष यान उनमें से किसी की ओर गुरुत्वाकर्षण नहीं करेगा. आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान विद्युत चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले गया है.इसरो के मुताबिक विशेष सुविधाजनक बिंदु L1 का उपयोग करते हुए चार पेलोड सीधे सूर्य को देखते हैं और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करते हैं, इस प्रकार अंतरग्रहीय मध्यम में सौर गतिशीलता के प्रसार प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करते हैं. अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि उम्मीद है कि आदित्य-एल1 के सात पेलोड कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार और अन्य की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे.