चुनाव आयोग ने सोमवार को राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। एक ओर इन राज्यों में चुनाव तारीखों का ऐलान हुआ तो वहीं दूसरी ओर एक बार फिर कांग्रेस की ओर से जातिगत जनगणना की मांग उठी। सोमवार को ही कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक हुई और इसमें जाति आधारित गणना और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चुनावी रणनीति चर्चा हुई। सीडब्लूसी की मीटिंग के बाद राहुल गांधी मीडिया के सामने आए और जाति जनगणना की बात करते हुए केंद्र पर निशाना साधा। राहुल गांधी का फोकस ओबीसी पर था। उन्होंने कहा कि हमारे 4 मुख्यमंत्री हैं और उसमें 3 ओबीसी हैं। बिहार में जाति गणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद राहुल गांधी इस मुद्दे को और तेजी से उठा रहे हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडा का मुकाबला करने के लिए जाति आधाारित गणना पर जोर दिया है।साथ ही ओबीसी को अपने पाले में खींचने की कोशिश तेज कर दी है। पहले 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव और इन चुनावों से पहले कांग्रेस बाकी मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए इस राह पर तेजी से आगे बढ़ती दिख रही है। राहुल गांधी की बात से एक बात साफ नजर आ रही है कि कांग्रेस अब इस मुद्दे पर और आगे बढ़ने वाली है।राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ओबीसी वर्ग के लिए काम नहीं करते, बल्कि उनका ध्यान भटकाने का प्रयास करते हैं। राहुल गांधी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना एक एक्सरे की तरह है जिससे ओबीसी और अन्य वर्गों की स्थिति के बारे में पता चल सकेगा। राहुल गांधी ने सवाल किया कि आखिर प्रधानमंत्री यह एक्सरे क्यों नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि हमारे 4 सीएम हैं और उनमें से तीन ओबीसी के हैं। बीजेपी के दस मुख्यमंत्री हैं लेकिन एक ही ओबीसी से है। मैंने संसद में उदाहरण दिया कि देश के 90 सचिवों में से केवल तीन ओबीसी वर्ग के हैं। इसे लेकर आज तक कुछ नहीं कहा गया। इससे साफ था कि नरेंद्र मोदी इस बात पर सहमत हैं कि देश में जिनकी आबादी 50 फीसदी के करीब है उनकी सत्ता में भागीदारी न के बराबर हो। उनका काम है कि ओबीसी समुदाय का ध्यान भटकाया जाए। राहुल गांधी ने कहा कि हम कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में जातीय जनगणना कराएंगे और इसके अलावा जिन राज्यों में हमारी सरकार आएगी वहां भी ऐसा फैसला लेंगे।लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, बीजेपी के पक्ष में ओबीसी का वोट बैंक बढ़ा है। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से इसमें काफी इजाफा हुआ है। यदि पिछले दो लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो जाए तो पता चलता है कि बीजेपी के पक्ष में ओबीसी वोटर लामबंद हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस की पकड़ यहां कमजोर हुई है। सीएसडीएस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में 22 फीसदी ओबीसी मतदाताओं ने मतदान किया लेकिन 2014 में यह बढ़कर 34 फीसदी हो गया। यह वह चुनाव था जब पहली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 5 साल बाद जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तब यह आंकड़ा पहुंचकर 44 फीसदी पर पहुंच गया। वहीं कांग्रेस के पक्ष में इन दो चुनावों में केवल 15 फीसदी वोट बैंक से संतोष करना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस की नजर इस बड़े वोट बैंक पर है।