सोनिया गांधी का चुनावी राजनीति से संन्यास

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति से संन्यास लेकर राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचने का फैसला किया है। सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा जाएंगी। उन्होंने जयपुर जाकर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन का पर्चा भर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17वीं लोकसभा के समापन भाषण में किसी का नाम लिए बिना कहा भी- कुछ लोग तो चुनाव लड़ने का माद्दा भी खो चुके हैं। आज जब सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया है तो लगता है कि पीएम मोदी का निशाना संभवतः सोनिया ही थीं। सोनिया गांधी का राजनीतिक सफर हमेशा बहस का विषय रहेगा। उन्हें कांग्रेस पार्टी को उबारने का श्रेय मिला तो पुत्र मोह में इसे डूबता छोड़ने का भी आरोप भी। सोनिया पर राजनीतिक शुचिता को भी मलिन करने के आरोप लगे जब सीताराम केसरी के साथ कांग्रेसियों ने ही दुर्व्यवहार किया और जब प्रधानमंत्री रहे पीवी नरिसम्हा राव के 2004 में निधन के बाद शव को कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया गया।वक्त-वक्त की बात है। एक वक्त था जब सोनिया गांधी पर्दे के पीछे से देश की सरकार चला रही थीं और एक वक्त अब है जब उनका साम्राज्य बिखर चुका है। नौबत यह आ गई है कि अब उन्होंने चुनावी राजनीति से तौबा कर लिया है। 78 वर्षीय सोनिया गांधी ने अपने जीवन में काफी उतार चढ़ाव देखे। जिस समय सोनिया ने कांग्रेस पद संभाला तो अगले ही वर्ष लोकसभा के चुनाव हो गए। 1999 के आम चुनाव में सोनिया ने उत्तर प्रदेश की अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से पहली बार चुनावी किस्मत आजमाई। उन्हें दोनों जगहों पर सफलता मिली और 13वीं लोकसभा में वो पहली बार संसद पहुंच गईं। बेल्लारी में उन्होंने बीजेपी की धाकड़ नेता सुषमा स्वराज को हराया था। हालांकि, उन्होंने यह सीट छोड़ दी और अमेठी का प्रतिनिधित्व करती रहीं।2004 के लोकसभा चुनावों में यह लक्ष्य भी हासिल हो गया। कांग्रेस पार्टी 2004 को लोकसभा चुनावों में 145 सीटें पाकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन गई। सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने का फैसला किया। सोनिया प्रधानमंत्री बनने वाली थीं। तब सोनिया को पीएम का पद छोड़ना पड़ा। 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) बना तो सोनिया उसकी चेयरपर्सन चुनी गईं। वो इस बार उत्तर प्रदेश की रायबरेली से जीतकर लोकसभा पहुंची थीं। सोनिया ने विरोध को देखते हुए खुद पीएम पद नहीं लेकर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बना दिया था। इस बीच 2006 का वह दौर आया जब एनएसी के अध्यक्ष को लाभ का पद करार दिए जाने के कारण सोनिया गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। एनएसी चेयरमैन के बतौर सोनिया गांधी पर पर्दे के पीछे से शासन चलाने के आरोप तो लगे ही, एक जबर्दस्त विवाद एनएसी की तरफ से तैयार एक कानूनी मसौदे पर हुआ। कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई, लेकिन सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव जीतती रहीं। सोनिया ने गांधी परिवार के इस गढ़ से 2009, 20014 और 2019 का चुनाव जीता। उनका आखिरी लोकसभा चुनाव इस मायने में बहुत खास रहा कि वो उत्तर प्रदेश से चुनकर आने वाली कांग्रेस पार्टी की अकेली लोकसभा सांसद थीं।

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