धराशायी हुआ 400 पार’ का नारा

लोकसभा चुनाव के वोटों की गिनती जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा धराशायी हो चुका है। बस गनीमत ये रही कि 20 साल बाद बीजेपी और एनडीए के लिए ‘फील गुड’ और ‘इंडिया शाइनिंग’ मोमेंट दोहराते-दोहराते बच गया। रुझानों में एनडीए को बहुमत तो मिलता दिख रहा है लेकिन बीजेपी 272 के जादूई आंकड़े से कम से कम 30-35 वोट पीछे रहती दिख रही है। ये तब है जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का बीजेपी का अजेंडा पूरा हो चुका है। जब आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने का बीजेपी का वादा पूरा हो चुका है। अगर ये रुझान नतीजे में तब्दील होते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू के बाद लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का करिश्मा तो कर सकते हैं लेकिन बिना गठबंधन की बैसाखी के सहारे ये मुमकिन नहीं। बीजेपी के पूर्ण बहुमत से चूकने के बाद अगर वह गठबंधन के तहत तीसरी बार सरकार बनाते हैं तो उन्हें जेडीयू चीफ नीतीश कुमार और टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू के रहमोकरम पर रहना होगा। बार-बार गठबंधन बदलने की वजह से ‘पलटू चाचा’ के नाम से बदनाम हो चुके नीतीश की पार्टी जोर देकर कह रही है कि वह एनडीए छोड़ कहीं नहीं जाएगी लेकिन उन्हें लेकर चर्चाएं चल निकली हैं। इंडिया गठबंधन की तरफ से नीतीश कुमार को डेप्युटी पीएम पद ऑफर किए जाने की भी चर्चाएं चल रही हैं। नायडू को लुभाने की भी कोशिशें चल रही हैं। तो आखिर वे क्या कारण रहे जो बीजेपी के खिलाफ गए, आइए समझते हैं।बीजेपी को झटके की एक बड़ी वजह अति आत्मविश्वास को कहा जा सकता है। ऐसा लग रहा ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा बैकफायर कर गया। राम मंदिर निर्माण के बाद बने माहौल और मोदी सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी का कोई निशान नहीं दिखने की वजह से बीजेपी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। ठीक वैसे ही जैसे 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त ‘फील गुड’ और ‘इंडिया शाइनिंग’ के तौर पर अति आत्मविश्वास से झटका लगा था। बीजेपी के मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में शानदार प्रदर्शन और यहां तक कि केरल में भी पहली बार खाता खोलने की तरफ बढ़ने के बावजूद उसकी सीटें पिछली बार से घटती दिख रहीं। वजह ये है कि यूपी, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उसे नुकसान हुआ। यहां तक कि प्रधानमंत्री के गृह राज्य हरियाणा में इस बार बीजेपी ‘परफेक्ट 26’ का करिश्मा नहीं दोहरा पाई, जबकि 2014 और 2019 में पार्टी ने वहां की सभी सीटों पर कब्जा किया था। ‘अबकी बार 400 पार’ के शोर में संभव है कि बीजेपी की तरह उसके कुछ समर्थक भी इस मुगालते का शिकार हो गए हों कि जीत तो रहे ही हैं और पोलिंग बूथ तक पहुंचने की जहमत नहीं उठाए हों। इसकी समीक्षा को बीजेपी को करनी ही होगी। बीजेपी इस बार प्रचंड जीत को लेकर आश्वस्त थी। इतना आश्वस्त कि इस बार चुनाव से पहले किसी भी तबके को फायदे वाली किसी स्कीम का भी ऐलान नहीं किया। पिछली बार पीएम किसान सम्मान निधि का ऐलान हुआ था लेकिन इस बार मोदी सरकार ने वैसी किसी भी योजना का ऐलान नहीं किया। एक तरफ विपक्षी गठबंधन ने लोकलुभावन वादे किए तो दूसरी तरफ बीजेपी ‘मोदी की गारंटी’ पर निर्भर रही जो इस बार शायद उतनी नहीं चली। जमीन पर 10 साल का सत्ताविरोधी रुझान भी रहा, जिसे भांपने में बीजेपी नाकाम रही।यूपी के अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के बाद ये पहला लोकसभा चुनाव था। सदियों के इंतजार के बाद मंदिर निर्माण का सपना पूरा हुआ। 22 जनवरी को धूमधाम से प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ। उस वक्त यूपी समेत देशभर में जिस तरह का माहौल था, उससे बीजेपी को फायदे की उम्मीद जरूर रही होगी। यही वजह थी कि पार्टी ने चुनाव के दौरान भी मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की लगातार कोशिश करती रही। इसके बावजूद यूपी में बीजेपी को तगड़ा नुकसान हुआ। रुझानों को देखकर लग रहा कि राम मंदिर निर्माण का बीजेपी को फायदा नहीं पहुंचा। बीजेपी के प्रदर्शन में गिरावट की एक बड़ी वजह सियासी लिहाज से सबसे बड़े सूबे यूपी में उसका उम्मीद से कमतर प्रदर्शन है। राहुल गांधी ने अग्निवीर वाली अग्निपथ स्कीम को बड़ा मुद्दा बनाया। वादा किया कि सत्ता में आते ही इस स्कीम को खत्म कर देंगे। यूपी में राहुल और अखिलेश ने बार-बार हो रहे पेपर लीक और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाते हुए युवाओं की नाराजगी को भुनाने की भरपूर कोशिश की। यूपी में चुनावी साल में ही कई पेपर लीक हुए। यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हुआ, यूपीएसएसी आरओ एआरओ परीक्षा का पेपर लीक हुआ, यूपी बोर्ड के कुछ विषयों के पेपर भी लीक हुए। इसे लेकर युवाओं में आक्रोश था और विपक्ष ने आक्रामक होकर इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा। यूपी में बीजेपी के निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे ये भी एक बड़ा कारण हो सकता है।चुनाव नतीजे और रुझानों में बीजेपी के लिए एक बड़ा संदेश छिपा है कि सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। ‘ब्रैंड मोदी’ की चमक फीकी पड़ी है। ‘मोदी मैजिक’ धुंधला हुआ है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सीट वाराणसी पर पिछली बार के मुकाबले काफी कम अंतर से चुनाव जीत पाए हैं। लोकल स्तर पर उम्मीदवारों के खिलाफ जनता में नाराजगी शायद बीजेपी को भारी पड़ी है। स्थानीय स्तर पर सांसदों के प्रति जनता की नाराजगी को कम करने के लिए बीजेपी ने कई सिटिंग एमपी के टिकट जरूर काटे लेकिन बड़ी तादाद में दलबदलुओं को भी टिकट दिया। बीजेपी का हर चौथा उम्मीदवार दलबदलू था। शायद पार्टी को ये महंगा पड़ा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *