छत्तीसगढ, एमपी और राजस्थान में क्षेत्रीय क्षत्रपों की अग्निपरीक्षा, तय होगा सियासी भविष्य

त्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा चुनावों के मतों की गणना रविवार को जबकि मिजोरम में सोमवार को होगी। इन विधानसभा चुनावों के नतीजे न केवल देश के सियासी परिदृश्य वरन राज्यों के क्षेत्रीय क्षत्रपों का भविष्य निर्धारित करने वाले होंगे।

खासकर भाजपा नेताओं के लिए विधानसभा चुनावों के नतीजे एक निर्णायक मोड़ ला सकते हैं। दशकों तक इन नेताओं के इर्द-गिर्द संबंधित राज्य की राजनीति घूमती रही है। इस रिपोर्ट में एक नजर उन क्षेत्रीय क्षत्रपों पर जिनका सबकुछ इन चुनावों में दांव पर लगा माना जा रहा है। क्या बन रहे सियासी समीकरण इस रिपोर्ट में जानिए।

शिवराज की अग्निपरीक्षा
भाजपा नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए विशेष रूप से दांव बहुत बड़ा है, जो कांग्रेस और उनकी स्वयं की पार्टी के भीतर से उन्हें नेता को तौर पर विस्थापित किए जाने को लेकर मिल रही चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। शिवराज हालांकि अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा जता रहे हैं। भाजपा ने इस बार शिवराज का नाम मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर आगे नहीं बढ़ाया और पार्टी में सामूहिक नेतृत्व का संदेश देने के लिये केंद्रीय मंत्रियों समेत कई क्षेत्रीय दिग्गजों को चुनाव लड़वाया था।

शिवराज का सियासी भविष्य निर्धारित करने वाला चुनाव
हालांकि शिवराज ने मतदाताओं के साथ ‘मामा’ के तौर पर भावनात्मक संबंध जोड़ने के लिये व्यापक अभियान भी चलाया जिससे प्रदेश की राजनीति में उनकी प्रधानता कायम रहे। भाजपा का प्रदर्शन तय करेगा कि पार्टी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान मजबूती से वापसी करेंगे या उन्हें अनिश्चित (राजनीतिक) भविष्य से जूझना होगा। मध्य प्रदेश में 2018 के चुनावों के बाद कमलनाथ के नेतृत्व में करीब 15 महीनों तक रही कांग्रेस सरकार के कार्यकाल को छोड़ दें तो वह (शिवराज) 2005 से ही सत्ता पर काबिज हैं।

गहलोत के सामने बड़ी चुनौती
यदि राजस्थान की बात करें तो ‘राज’ बदलेगा या ‘रिवाज’ ये नतीजे बताएंगे लेकिन प्रतिकूल चुनाव परिणाम का कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी पूर्ववर्ती भाजपा की वसुंधरा राजे, दोनों की किस्मत पर तत्काल प्रभाव पड़ने की संभावना है। शिवराज सिंह चौहान की तरह, गहलोत भी पश्चिमी राज्य में हर चुनाव में सत्तारूढ़ दल को बाहर करने के लगभग तीन दशक के ‘रिवाज’ को तोड़ने के लिए अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा कर रहे हैं।

वसुंधरा राजे के सियासी भविष्य का सवाल
चुनाव के नतीजे उम्मीदों के मुताबिक नहीं हुए तो कांग्रेस ओबीसी नेता (गहलोत) से परे विकल्प देख सकती है। हाल में उनका पार्टी नेतृत्व के साथ बहुत अच्छा तालमेल देखने को नहीं मिला है। वसुंधरा राजे राजे का भविष्य भी भाजपा के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।

राजस्थान में जीत की रूपरेखा तय करेगी सियासी लकीर
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पार्टी बड़ी जीत हासिल करती है तो भाजपा नेतृत्व राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए अन्य विकल्पों की तलाश कर सकता है, लेकिन कोई अन्य परिणाम उसके विकल्पों को सीमित कर सकता है और राजे की संभावनाओं को बढ़ा सकता है।

लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्रियों का टेस्ट
ऐसे में जब लोकसभा चुनाव भी नजदीक है, केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद सिंह पटेल और 18 अन्य सांसदों सहित भाजपा के कई क्षत्रपों का सियासी भविष्य इस बात से प्रभावित होगा कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों के साथ ही जिन विधानसभा सीटों पर वे चुनाव लड़ रहे हैं वहां पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहा। भाजपा के सात-सात सांसद मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में चार और तेलंगाना में तीन को चुनाव मैदान में उतारा गया है।

सिंधिया के प्रभाव का इम्तिहान
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भी बहुत कुछ दांव पर है, क्योंकि नतीजे भाजपा में शामिल होने के बाद उनकी राजनीतिक स्थिति को प्रतिबिंबित करेंगे। खासकर चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में उनके प्रभावों का आकलन किया जाएगा। भाजपा को इस क्षेत्र में 2018 के चुनावों में गंभीर उलटफेर का सामना करना पड़ा था ऐसे में वह कांग्रेस की बाजी पलटने की कोशिश कर रही है। सिंधिया उस वक्त कांग्रेस में थे।

क्या रमन सिंह की उम्मीदें चढ़ेंगी परवान?
नतीजे आने के बाद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर 2003-18 के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह के भाग्य पर रहेगी। पांच साल पहले सत्ता गंवाने के बाद रमन सिंह का राजनीतिक रसूख भी घट गया क्योंकि भाजपा राज्य में नेतृत्व की एक नई पौध को बढ़ावा देने पर विचार कर रही थी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा इस बार के राज्य विधानसभा चुनाव में रमन सिंह के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार के प्रदर्शन की लगातार प्रशंसा ने उनकी उम्मीदों को बढ़ा दिया है।

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