कल वैलेंटाइन डे है। प्यार करने वाले लोगों के लिए यह दिन बहुत खास होता है। वैसे प्यार की कई परिभाषा है। प्यार न सिर्फ प्रेमी जोड़े बल्कि हर रिश्ते में बहुत मायने रखता है।ऐसे मे आज हम आपको भगवान शिव और माता पार्वती की अद्भुत प्रेम कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। माता पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं। शिव और पार्वती के जैसे वैवाहिक जीवन की कामना हर कोई करता है। एक तरफ जहां देवी पार्वती ने शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की तो वहीं शिव भी अपनी पत्नी पार्वती से इतना प्रेम करते हैं कि उनसे हमेशा संवाद करते दिखते हैं। सनातन धर्म के ज्यादातर पुराण और व्रतों की कहानियों में शिव पार्वती को कथा सुना रहे होते हैं। शिव ऐसे पति हैं जो अपनी पत्नी को सबसे अधिक समय देते हैं। भगवान शिव का पत्नी के लिए प्रेम किसी तीसरे के सोचने-समझने की परवाह नहीं करता, लेकिन जब भी पत्नी को कोई चोट पहुंचती है, तब उनके क्रोध में सृष्टि को खत्म कर देने का ताप आ जाता है।
देवी पार्वती नित्य ही अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए महादेव से अलग-अलग प्रश्न पूछतीं और उनपर चर्चा करती हैं। एक दिन उन्होंने देवों के देव महादेव से पूछा- प्रेम क्या है, प्रेम का रहस्य क्या है, इसका वास्तविक स्वरूप क्या है, इसका भविष्य भविष्य क्या है?
माता पार्वती द्वारा प्रेम से जुड़े इन सवालों को सुनने के बाद महादेव ने कहा, “प्रेम के बारे में तुम पुछ रही हो पार्वती? प्रेम के अनेकों रूप को तुमने ही उजागर किए हैं। तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियां हुईं। तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर निहित है। फिर शिव की बातें सुनकर माता पार्वती ने कहा, “क्या इन विभिन्न अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है?” महादेव बोले, “सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्यागकर दूर चली गई, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया। मेरे नेत्रों से अश्रुओं की धाराएं बहने लगीं।” महादेव ने कहा- अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझ से भी दूर कर दिया था पार्वती। तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना, यही तो प्रेम है।
आगे शिव कहते हैं कि तुम्हारे और मेरे पुन: मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना, हर संभव षड्यंत्र रचना, इसका कारण हमारा असीम प्रेम ही तो है। तुम्हारा पार्वती के रूप में पुन: जन्म लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बाहर निकलने पर विवश करना और मेरा विवश हो जाना यही तो प्रेम है।
शिव जी कहते हैं कि जब तुम अपना सौंदर्यपूर्ण ललिता रूप जो अति भयंकर भैरवी रूप भी है, उसका दर्शन देती हो और जब मैं तुम्हारे अति-भाग्यशाली मंगला रूप जो कि उग्र चंडिका रूप भी है, उसका अनुभव करता हूं, जब मैं बिना किसी प्रयत्न के तुम्हें पूर्णतया देखता हूं तो मैं अनुभव करता हूं कि मैं सत्य देखने में सक्षम हूं। जब तुम मुझे अपने सम्पूर्ण रूपों के दर्शन देती हो और मुझे आभास कराती हो कि मैं तुम्हारा विश्वासपात्र हूं। इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो, जिसमें झांक कर मैं स्वयं को देख पाता हूं कि मैं कौन हूं?महादेव कहते हैं कि तुम अपने दर्शन से साक्षात् कराती हो और मैं आनंदविभोर हो नाच उठता हूं और नटराज कहलाता हूं, यही तो प्रेम है। जब तुम बार-बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे आभास कराती हो कि मैं तुम्हारे योग्य हूं, तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिंबित कर मेरे दर्पण के रूप को धारण कर लिया, यही तो प्रेम है पार्वती।