BJP से दोबारा गठबंधन करें या नहीं? पसोपेश में SAD, कैसे किसान आंदोलन ने बढ़ा दी टेंशन

पंजाब किसान यूनियनों की ओर से ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन ऐसे समय हो रहा है जब लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में राजनीति का गरमाना जाहिर है। भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के संभावित गठबंधन पर भी इसका असर पड़ा है।शिअद इससे पहले एनडीए गठबंधन का हिस्सा रह चुका है। ऐसी चर्चा थी कि लोकसभा इलेक्शन से पहले एक बार फिर NDA के साथ SAD आ सकता है। फिलहाल प्रदर्शनकारी किसानों और बीजेपी शासित केंद्र सरकार के बीच बातचीत चल रही है। भाजपा और शिअद दोनों ही इस पर करीबी नजर बनाए हुए हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिअद की एक बार फिर से एनडीए में वापसी होगी या नहीं, यह काफी हद तक इस बातचीत पर निर्भर करेगा।शिअद के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने किसानों और खेत मजदूरों के साथ एकजुटता दिखाई है। इसे लेकर उन्होंने एक दिन के लिए ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ कार्यक्रम रद्द कर दी थी। उन्होंने कहा, ‘किसानों और खेत मजदूरों के हितों की रक्षा करना अकाली दल और उसके कार्यकताओं की पहली प्राथमिकता रही है और हमेशा रहेगी। अकाली दल किसानों की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक राजनीतिक आवाज है और उनके हितों की रक्षा के लिए हमेशा सबसे आगे रहा है।’ उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए ऐतिहासिक और अग्रणीय उपाय लागू किए हैं। यह परंपरा जारी रहेगी।

गठबंधन के लिए अभी इंतजार करना सही: शिअद कोर कमेटी
शिअद कोर कमेटी ने भी किसानों को पार्टी की ओर से पूरा समर्थन देने की बात दोहराई है। कोर कमेटी में फैसला हुआ कि पार्टी को तब तक भाजपा के साथ फिर से गठबंधन नहीं करना चाहिए जब तक कि उनकी शिकायतों का समाधान नहीं मिल जाता। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, SAD पैनल के एक सदस्य ने बताया कि ज्यादातर सदस्यों का मानना है कि अभी इंतजार करना चाहिए। जब तक किसानों के मुद्दे हल नहीं हो जाते और कृषि आंदोलन समाप्त नहीं हो जाता, तब तक अकाली दल को बीजेपी के साथ गठबंधन से बचना होगा।

‘गठबंधन दोनों पार्टियों के हित में, मगर…’
सीनियर अकाली नेता ने कहा, ‘पार्टी के 75 फीसदी टॉप लीडर्स का मानना है कि भाजपा के साथ गठबंधन करना दोनों पार्टियों के हित में होगा। मगर, कृषि आंदोलन दोनों की मुश्किलें बढ़ा सकता है। फिलहाल अकाली दल को बीजेपी से गठबंधन करने से बचना सही होगा।’ उन्होंने कहा कि किसानों की चिंताओं का समाधान होना चाहिए। इसके बाद ही गठबंधन की बात आगे बढ़ाई जाए। मालूम हो कि पंजाब में किसानों को शिअद का समर्थक माना जाता रहा है। SAD का वोट बैंक एक तरह से किसान ही हैं। इससे पहले सितंबर 2020 में शिअद ने NDA से नाता तोड़ लिया था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में यह फैसला लिया गया था। इन कानूनों के खिलाफ किसानों ने जमकर प्रदर्शन किया था और बाद में इन्हें वापस ले लिया गया।

किसानों से किए वायदे पूरे करे केंद्र: सुखबीर सिंह बदल
मौजूदा किसान आंदोलन को लेकर शिअद की ओर से कहा गया कि केंद्र को सभी वायदे पूरे करने चाहिए। सुखबीर सिंह बदल ने कहा कि उनकी पार्टी शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध के के अधिकार का पूरा समर्थन करती है। अकाली दल अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं भारत सरकार से किसानों से की गई सभी प्रतिबद्धताओं को तुरंत पूरा करने की अपील करता हूं।’ उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को गेंहू व धान सहित 17 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने के अपने वायदे का सम्मान करना चाहिए। वह केंद्र और पंजाब सरकार से किसानों की उचित मांगों का शांतिपूर्ण समाधान दमन के बजाय बातचीत के माध्यम से निकालने का आग्रह करते हैं।

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