इजरायल-हमास युद्ध का आज 21वां दिन है। इस बीच हमास आतंकियों ने ईरान के माध्यम से गाजा में तुरंत संघर्षविराम करने को कहा है। उधर, इजरायली सेना गाजा पट्टी में घुसकर टैंकों से कोहराम मचा रही है।
संयुक्त राष्ट्र पहले ही मानवीय संकट झेल रहे गाजा पट्टी में संघर्ष विराम करने का आह्वान कर चुका है। कई मुस्लिम देशों समेत यूरोपीय देशों ने भी गाजापट्टी में सीजफायर करने को कहा है। इधर, हमास आतंकियों ने इजरायली बंधकों को रिहा करने के एवज में शर्त रखी है।
हमास ने कहा है कि वो सिविल नागरिकों की रिहाई के लिए तैयार है लेकिन उसके बदले में इजरायल की जेलों में बंद 6 हज़ार फिलिस्तीनियों को रिहा करना होगा। हमास ने ये शर्त भी ईरान के जरिए रखी है। उधर, इजरायल में लोग प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं। नेतन्याहू घर से लेकर बाहर तक चौतरफा घिरे हुए हैं और कई मोर्चों पर जंग लड़ रहे हैं।
अमेरिका-यूएन-भारत का भी भय
संयुक्त राष्ट्र ने जहां इजरायल से युद्धविराम के लिए कहा है, वहीं अमेरिका ने दो टूक कहा है कि हमास आतंकियों से जंग खत्म होने के बाद इजरायल को दो राष्ट्र (फिलिस्तीन और इजरायल) समाधान की दिशा में काम करना होगा, जबकि इजरायल अपने विस्तारवादी मंसूबों पर आगे बढ़ता रहा है। इससे पहले भी इन मंसूबों में कई बार इजरायल ने सफलता पाई है लेकिन अमेरिका ने उन इरादों पर ब्रेक लगा दिया है।
भारत ने भी गाजा पट्टी में मानवता के लिए संघर्ष विराम करने और मानवीय सहायता के लिए ह्यूमन कॉरिडोर खोलने और स्थाई समाधान के लिए दो देश सिद्धांत पर आगे बढ़ने के कहा है। अगर इजरायल ने इस फार्मूले को नहीं माना तो उसे अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों समेत भारत का भी कोपभाजन बनना पड़ सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इजरायल की छवि न केवल धूमिल होगी बल्कि साझेदार देशों के बीच उसकी पैठ भी कमजोर होगी।
सर्वे में अधिकांश लोग टू नेशन के खिलाफ
हमास-इजरायल की मौजूदा लड़ाई दोनों के अस्तित्व की भी लड़ाई है। इजरायल जहां अपने अस्तित्व को बचाते हुए उसका भू-राजनीतिक विस्तार करना चाहता है, वहीं हमास की अगुवाई में फिलिस्तीन अपने अस्तित्व और राष्ट्रवाद की लड़ाई लड़ रहा है। इजरायल यहूदी राष्ट्रवाद का झंडा थामे हुए है तो हमास की आड़ में फिलिस्तीन अरब मुस्लिम राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करना चाह रहा है। बीच में फंसे वेस्ट बैंक शांति की राह देख रहा है।
प्यू रिसर्च सेंटर ने मार्च में वेस्ट बैंक में हिंसा भड़कने से पहले टू नेशन फार्मूले पर इजरायल में एक सर्वे कराया था। इस सर्वे में अधिकांश इजरायली दो देश के सिद्धांत के खिलाफ हैं। केवल 35 फीसदी इजरायली ही ये फार्मूला मानने को तैयार हैं, जबकि 65 फीसदी को यह नागवार लग रहा है। मार्च और अप्रैल में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 35% इजरायली सोचते हैं कि इजरायल और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के लिए शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व के लिए एक रास्ता खोजा जा सकता है। यह 2017 के सर्वे के बाद बाद से 9 फीसदी और 2013 के सर्वे के मुकाबले 15 फीसदी की गिरावट दर्शाता है।
यानी समय के साथ-साथ लोग इजरायली राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक बनते जा रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या इजरायल के अंदर रह रहे अरब इजरायलियों की है। 2013 में 74 फीसदी अरब इजरायली दोनों देशों के सह-अस्तित्व की बात करते थे लेकिन अब सिर्फ 41 फीसदी लोग ही ऐसा सोचते हैं। शेष 59 फीसदी लोग बृहत इजरायल का सपना संजो रहे हैं। यहूदी इजरायलियों में भी यह सोच घर कर रही है। 2013 में 46 फीसदी यहूदी दो देश चाहते थे जो अब घटकर सिर्फ 32 फीसदी रह गए हैं।
बंधकों के परिजनों का विरोध
नेतन्याहू सरकार के खिलाफ गुरुवार को इजरायल की राजधानी तेल अवीव की सड़कों पर उन लोगों ने भी विरोध-प्रदर्शन किया जिनके परिजन हमास द्वारा बंधक बना कर रखे गए हैं। ऐसे 224 बंधकों में से कुछ के परिजनों ने विरोध मार्च निकाला फिर प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर सरकार की निष्क्रियता पर गुस्सा निकाला। बंधकों के परिजनों ने साफ तौर पर कहा है कि उनके सब्र का बांध टूट चुका है और सरकार उनके धैर्य की परीक्षा न ले।
ऐसी सूरत में अगर बेंजामिन नेतन्याहू मित्र राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय दबाव में आते हैं और टू नेशन के फार्मूले पर आगे बढ़ते हैं तो, उन्हें देश के अंदर ही विरोध का सामना करना पड़ सकता है। फिर उनकी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है। नेतन्याहू की अगुवाई में गठबंधन ने पिछले ही साल 120 सीटों वाली संसद में 64 सीटें जीतकर साझा सरकार बनाई थी। इससे पहले 2021 में नेतन्याहू को करारा झटका लग चुका था। हमास-हिजबुल्लाह समेत मुस्लिम देशों से दो दो हाथ कर रहे नेतन्याहू के लिए मौजूदा समय संकट से भरा है। उन्हें एक साथ चार मोर्चों पर युद्ध लड़ना पड़ रहा है।