हर साल मॉनसून में क्यों हालात हो जाते हैं बेकाबू, कहीं आती है बाढ़ तो कहीं जलजला

र साल मॉनसून के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों से बाढ़, बादल फटने और भारी वर्षा के कारण भूस्खलन की खबरे आती रहती हैं। भले ही पूर्वोत्तर राज्य असम हो या उत्तराखंड या फिर केरल, इस दौरान आए प्राकृतिक आपदा से जान और माल की भारी हानि होती है।बारिश के कारण महानगरों में ड्रेनेज सिस्टम खराब हो जाता है, जिसके चलते आम लोगों को जीना मुहाल हो जाता है। प्राकृतिक आपदा के हालिया घटनाक्रम को देखें को सिक्किम में बादल फटने से तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई, जिसमें दर्जनों की मौत हो गई है और कई लोग लापता बताए जा रहे हैं। मगर सवाल ये है कि आखिर मॉनसून के दौरान इस तरह की आफत क्यों झेलनी पड़ती है।

कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के अनुसार, केरल के 123 गांवों के विस्तार सहित कुल 13,108 वर्ग किमी जमीन को पारिस्थितिकी रूप से नाजुक भूमि बताया गया था। इस लिहाज से यहां पर्यटन और कंस्ट्रक्शन का काम करने की सख्त मनाही थी। पारिस्थितिकी रूप से नाजुक भूमि के आसपास मानव बस्तियों के होने से प्राकृतिक आपदा के दौरान जान और माल की भारी क्षति होगी। केंद्र द्वारा नवंबर 2013 में रिपोर्ट को लागू करने के लिए दो आदेश पारित करने के बाद केरल के पहाड़ी क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन देखा गया था।

पर्यटन केरल में लोगों की आजीविका का एक अहम जरिया है, चेतावनी के बावजूद भी लोग पैसा कमाने के लिए पारिस्थितिकी रूप से नाजुक भूमि के करीब कंस्ट्रक्शन करने पर मजबूर हैं। ठीक वैसे ही शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के एक अध्ययन में दो साल पहले चेतावनी दी गई थी कि सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील के ऊपर बादल फट सकते हैं। इस परिस्थिति में बाढ़ आ सकती है जो निचले क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है। 3-4 अक्टूबर की मध्यरात्रि को दक्षिण ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने से तीस्ता नदी बेसिन में अचानक बाढ़ आ गई, जिससे 14 लोगों की मौत हो गई और 22 सेना कर्मियों सहित 102 अन्य लापता हो गए।

जर्नल जियोमॉर्फोलॉजी में प्रकाशित 2021 के अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दक्षिण ल्होनक झील में पिछले दशकों में हिमनदों के पिघलने के कारण जल राशि में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है, जिससे हिमनद झील के ऊपर बादल फटने से बाढ़ की संभावना बढ़ गई है। हिमनद झील के ऊपर बादल फटने से बाढ़ तब होती है जब ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों में पानी का स्तर पहले से कही ज्यादा हो।

महानगरीय क्षेत्रों में बाढ़ जैसी परिस्थितियों के लिए ड्रेनेज सिस्टम जिम्मेदार हैं। महानगरीय शहरी में ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था पुरानी हो चली है, अधिक आबादी के कारण इसकी कैपेसिटी भी अधिक होनी चाहिए। चेन्नई में 2015 की बाढ़ ड्रेनेज सिस्टम की वजह से ही था। इसके अलावा मुंबई में हर साल की तरह इस साल भी वर्षा काल की शुरुआत में ही खराब ड्रेनेज सिस्टम की वजह से सड़कों पर पानी गया था और हालात बुरे हो गए थे। दिल्ली और एनसीआर में औसत बारिश ही घंटों जाम का कारण बन जाती है। इस साल तो पानी का स्तर इतना बढ़ गया कि शहर के इलाकों में पानी जमा हो गया और बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई।

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