बदले पर आमादा इजरायल, गाजा की फिजाओं में घोल रहा ‘सफेद जहर’? कितना है खतरनाक

गभग एक हफ्ते से हमास और इजरायल के बीच युद्ध चल रहा है। दोनों पक्षों के बीच लड़ाई बद से बदतर होती जा रही है। जिस तरह इजरायल में हमास के हमलों से मरने वालों का सिलसिला जारी है, उसी तरह इजरायल के जवाबी हमलों से गाजा धीरे-धीरे लाशों के ढेर से भरता जा रहा है।

इजरायली धरती पर रॉकेट हमले जारी हैं। उस हमले का विरोध करने के साथ ही इजरायल एक के बाद एक हवाई हमले कर रहा है। फिलिस्तीन की शिकायत है कि इजरायल गाजा पर हमला करने के लिए ‘सफेद फॉस्फोरस बम’ का इस्तेमाल कर रहा है।

हमास के हमलों को रोकने के लिए इजरायल उन्नत हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है। वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने चेतावनी देते हुए कहा, ”हम इस दुनिया से हमास को पूरी तरह मिटा देंगे।” हमास के खिलाफ घातक फॉस्फोरस बमों के इस्तेमाल ने पहले ही इजरायल के लिए सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, नेतन्याहू के देश ने ऐसे बमों के इस्तेमाल से पूरी तरह इनकार किया है।

क्या है सफेद फॉस्फोरस बम?

आखिर सफेद फॉस्फोरस बम क्या है? इस बम के प्रयोग से क्या प्रभाव होंगे? ऐसे बमों के इस्तेमाल पर कई साल पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन हमास के साथ युद्ध में फिलिस्तीनियों ने इजरायल पर उनके घनी आबादी वाले इलाकों में ऐसे बम गिराने का गंभीर आरोप लगाया है। सफेद फास्फोरस एक मोम जैसा रसायन है। कभी-कभी इसका रंग पीला होता है इससे बासी और सड़े हुए लहसुन जैसी गंध आती है।

 अलजजीरा की रिपोर्ट की मानें तो यह रसायन ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही आग पकड़ लेता है। वह आग पानी से भी नहीं बुझती यह इस रसायन के सबसे खतरनाक गुणों में से एक है। जब यह रसायन ऑक्सीजन के संपर्क में आता है तो जो प्रतिक्रिया होती है, उससे ऑक्सीजन का स्तर तेजी से गिरने लगता है। परिणामस्वरूप, जहां ऐसे बम गिराए जाते हैं वहां आग लगने के अलावा हवा में ऑक्सीजन भी तेजी से खत्म हो जाती है। नतीजा यह होता है कि अगर कोई इस रसायन से लगी आग से बच भी जाता है तो ऑक्सीजन की कमी के कारण उसकी मौत हो जाती है।

कितना है खतरनाक

यह रसायन तब तक जलता रहेगा जब तक यह ऑक्सीजन के संपर्क में रहेगा। यह रसायन शरीर को भयंकर रूप से जला देता है। इतना ही नहीं, यह रसायन त्वचा, मांस, नसों और यहां तक ​​कि हड्डियों में भी प्रवेश कर जाता है। फॉस्फोरस बम के प्रयोग से 815 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्पन्न होता है। इसके साथ सफेद गाढ़ा धुआं भी उत्पन्न होता है। जमीन पर गिरते ही इस बम ने तेजी से आग जाती है जिससे निपटना मुश्किल है। परिणामस्वरूप इसका प्रभाव तीव्र और अत्यंत गंभीर हो जाता है।

अगर कोई इस बम के संपर्क में आता है तो उसे भयानक संक्रमण हो जाता है। जीवन प्रत्याशा एक झटके में बहुत कम हो जाती है। इस बम का जहर त्वचा के माध्यम से खून में प्रवेश कर जाता है। नतीजतन, हृदय, लीवर, किडनी समेत शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचता है और इसकी वजह से शरीर के कई अंग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और उस व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

कब-कब हुआ इस्तेमाल

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सफेद फॉस्फोरस बमों का अंधाधुंध प्रयोग किया गया। इस प्रकार के बम का प्रयोग अमेरिका ने जर्मनी के विरुद्ध किया था। यह भी दावा किया जाता है कि इन बमों का इस्तेमाल सैनिकों के अलावा जानबूझकर जर्मन बस्तियों में भी किया गया था। इराक युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना पर भी इस बम के इस्तेमाल का आरोप लगा था।

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