भारत रत्न नरसिम्हा राव: सोनिया से रिश्ते क्यों थे तल्ख, क्यों नहीं होने दिया गया था दिल्ली में दाह संस्कार?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया है।इससे पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च अलंकरण से सम्मानित करने का ऐलान हो चुका है। एक पखवाड़े के अंदर पांच लोगों को यह सर्वोच्च सम्मान देने का ऐलान हुआ है।नरसिम्हा राव कांग्रेसी थे। वह 1991 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। नरसिम्हा राव को देश में आर्थिक उदारीकरण की नीति लागू करने के लिए जाना जाता है। 1991 में जब वह कांग्रेस में हाशिए पर थे और दिल्ली छोड़कर हैदराबाद में बसने की तैयारी कर रहे थे, तभी राजीव गांधी की हत्या से उपजी सियासी परिस्थितियों में अचानक प्रधानमंत्री पद पर बिठा दिए गए थे।मशहूर पत्रकार और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब ‘1991 हाउ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री’ में लिखते हैं, ‘नरसिम्हा राव देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे।’ हालांकि, गांधी परिवार से उनके रिश्ते बहुत सामान्य नहीं रहे। 1992 में जब अयोध्या में बाबरी विध्वंस हुआ तो गांधी परिवार से उनके रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई थी।विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में इसका जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है, “राहुल गांधी ने तो सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि ‘अगर उनका परिवार वर्ष 1992 में सत्ता में होता तो शायद बाबरी मस्जिद नहीं गिरती।” राजीव गांधी की हत्या के मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई नहीं करने और मनमोहन सिंह के साथ देश में आर्थिक सुधारों को लागू करने का क्रेडिट लेने की वजह से भी राव के रिश्ते गांधी परिवार और खासकर सोनिया गांधी से बिगड़ने लगे थे।

गांधी परिवार से रिश्तों में दरार आने की वजह से कांग्रेसी भी उनसे कटने लगे थे। सितंबर 1996 में जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा तब 25 सितंबर को एक टी पार्टी रखी थी लेकिन उन्हें यह टी पार्टी फिर रद्द करनी पड़ी थी क्योंकि कोई भी कांग्रेसी उसमें शामिल होने को तैयार नहीं था। राव को पार्टी में ना सिर्फ बाबरी विध्वंस के कसूरवार के तौर पर देखा जा रहा था बल्कि जेएमएम रिश्वत कांड, हर्षद मेहता घोटाला कांड, सेंट किट्स जालसाजी मामलों की वजह से कांग्रेस की हुई किरकिरी के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा था।गांधी परिवार से उनके रिश्ते इस कदर बिगड़े कि उनका अंतिम संस्कार भी नई दिल्ली में नहीं होने दिया गया। 23 दिसंबर 2004 को जब एम्स में राव का निधन हुआ तो शाम चार बजे के करीब उनका शव 9 मोतीलाल नेहरू रोड स्थित आवास पर लाया गया। वहां पहुंचे तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के बेटे प्रभाकर राव को हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने की सलाह दी थी। इस पर वह तैयार नहीं थे। बाद में सोनिया गांधी के करीबी गुलाम नबी आजाद ने भी यही सलाह प्रभाकर को दी थी। बाद में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने प्रभाकर को मनाया था।अगले दिन जब नरसिम्हा राव का पार्थिव शरीर हैदराबाद के लिए ले जाया जा रहा था तो एयरपोर्ट पर जाने से पहले उनके बेटे ने परंपरा के अनुसार पार्थिव शरीर को 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय ले जाने का अनुरोध किया। इस अनुरोध पर जब राव का पार्थिव शरीर कांग्रेस दफ्तर पहुंचा तो लंबे समय तक इंतजार के बाद भी पार्टी दफ्तर का गेट नहीं खुला था। करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद फिर पार्थिव शरीर एयरपोर्ट रवाना कर दिया गया। वहां कई कांग्रेसी मौजूद थे लेकिन किसी ने भी मुंह नहीं खोला था।

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