तकनीक का इस्तेमाल चुनावों को लेकर काफी आम सा हो गया है। सोशल मीडिया, थ्री-डी टेक्नोलॉजी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चुनाव प्रचार करना सियासी पार्टियों के लिए आसान हो गया है। मगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आने वाले चुनाव में भ्रामक चीजों को प्रसार के प्रति उत्तरदाई हो सकता है।एआई की मदद से लोगों में भ्रांतियां फैल सकती हैं। इसका हालिया उदाहरण डीपफेक तकनीक है। डीपफेक की वजह से असली और नकली के बीच की फर्क करने में चुनौती पेश आ रही है, ऐसे में इसके इस्तेमाल से भारतीय चुनावों में राजनीतिक नेताओं को लेकर विवादास्पद टिप्पणियां या अपमानजनक बयान के वीडियो वीडियो और ऑडियो क्लिप की बाढ़ आ सकती है।
बढ़ी है डीपफेक वीडियो की आमद
भारतीय राजनेताओं के डीपफेक या कंप्यूटर से बनाए फर्जी वीडियो की आमद पहले से इंटरनेट पर काफी बढ़ गई है। उदाहरण के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई क्षेत्रीय भाषाओं में लोकप्रिय गाने गाते हुए एआई से बनाई नकली ऑडियो क्लिप इंटरनेट पर छा गई हैं। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के दो छेड़छाड़ किए गए वीडियो क्लिप भी सामने आए, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को झूठा बताया गया और कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कमल नाथ की छवि को बेहतर बताया गया।
पीएम मोदी ने बताया बड़ी चुनौती
पीएम मोदी भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि डीपफेक सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। उन्होंने स्वीकारा कि एक बार तो उन्होंने खुद को गरबा खेलते हुए देखा था। पीएम मोदी ने कहा कि इस तरह के कई उदाहरण इंटरनेट पर मौजूद हैं, जो लोकतांत्रिक समाज में अराजकता फैला सकते हैं।
क्या हो सकते हैं उपाय
विशेषज्ञों का कहना है कि एआई को ध्यान में रखते हुए मौजूदा आईटी नियमों में तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। इंडिया फ्यूचर फाउंडेशन के सीईओ कनिष्क गौड़ कहते हैं, “सरकार जो नया डिजिटल इंडिया एक्ट लाने की योजना बना रही है, उसमें एआई को ध्यान में रखा जाना चाहिए और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसे लागू किया जाए।”
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर एआई की तकनीक का इस्तेमाल कर लोगों को टारगेट कर विरोधी खेमों के खिलाफ कंटेंट तैयार कर उसका प्रसार किया जा सकता है। ऐसे में आने वाले चुनावों के लिए एआई जैसी तकनीक एक बेहतर लोकतंत्र के लिए एक चुनौती बन सकती है।