पंजाब और हरियाणा से सैकड़ों, हजारों की तादाद में दिल्ली कूच करते किसान। सड़कों पर किसान संगठनों के झंडे लगे ट्रैक्टर-ट्रॉली और दूसरी गाड़ियों का लंबा काफिला। ट्रालियों पर लगा तिरपाल उसके नीचे लदे गद्दे, कंबल, बर्तन, राशन समेत जरूरी सामान। तैयारी पूरी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में डेरा डालने की तैयारी। महीनों डेरा डाल रखने की तैयारी। काफिले में खुदाई की मशीनें भी दिख जाएंगी जिनके बारे में किसानों का दावा है कि इसका इस्तेमाल बैरिकेडिंग तोड़ने में किया जाएगा। लोकसभा चुनाव अब बमुश्किल दो महीने दूर है। लिहाजा सियासी तड़का भी लग रहा है। देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस ने गारंटी कार्ड खेल दिया है- सत्ता में आए तो सबसे सबसे एमएसपी को कानूनी गारंटी देने का कानून लाएंगे। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को किसान आंदोलन में सियासी लाभ का मौका दिख रहा तो मोदी सरकार बातचीत के जरिए किसानों को मनाने और बात न बनने पर उन्हें दिल्ली पहुंचने से रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। किसान संगठनों की अपनी मांगें हैं लेकिन आंदोलन की टाइमिंग सवाल खड़े कर रही। चुनाव से पहले ही आंदोलन क्यों? क्या टाइमिंग की वजह से आंदोलन से सियासत की बू नहीं आ रही? लोकसभा चुनाव सिर पर है लिहाजा मोदी सरकार नहीं चाहती कि दिल्ली में आंदोलनकारी किसान 2020-21 की तरह डेरा डालें। किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह और महान कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को ‘भारत रत्न’ से नवाजने को किसान समुदाय को साधने की कोशिश के रूप में ही देखा गया। वही किसान पीएम मोदी की प्राथमिकता वालीं 4 जातियों में से एक हैं। मोदी सरकार को डर है कि चुनाव से पहले दिल्ली में किसान आंदोलन उसके किए कराए पर पानी फेर सकता है और पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसीलिए सरकार इस बार शुरुआत से सक्रिय है। किसान संगठनों की तरफ से ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान के बाद मोदी सरकार बातचीत के लिए किसानों के दर पर पहुंच गई। आंदोलन के नाम सड़कों पर अराजकता या फिर शहरों को बंधक बनाकर सरकारों को झुकाया जा सकता है। इस बार भी आंदोलन की आड़ में सियासत है। लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हो रहा आंदोलन साफ बता रहा कि मंशा सियासी है। इसे नकारना खुद की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। 2020-21 में किसान आंदोलन की आड़ में सियासत को पूरे देश ने देखा। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में प्रचार करते किसान आंदोलन के चेहरों को पूरे देश ने देखा। चुनावी रैलियां करते किसान नेताओं को पूरे देश ने देखा। अब लोकसभा चुनाव से पहले फिर आंदोलन शुरू हो चुका है। मोदी सरकार के लिए ये चुनौती भी है।